कोविड-19: हम इसे हरा सकते हैं | COVID-19: We Can Beat it
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कोरोना वायरस महामारी ने सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से बड़ी मात्रा में प्रभाव डाल कर एक वैश्विक संकट पैदा कर दिया है। इस चुनौतीपूर्ण समय में हमारे धैर्य और शक्ति की परीक्षा है, कि हम न सिर्फ वाइरस को फैलने से रोकें बल्कि इस परिस्थिति से बेहतर तरीके से बाहर आएं। इस महामारी को गंभीरता से लेना और जिम्मेदारीपूर्ण ढंग से कार्रवाई करना, हमारे लिए महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह भयभीत होने का समय नहीं है।
वायरस को हराने के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है। यह बहुत आवश्यक है कि हर कोई साफ-सुथरा रहने, बार-बार हाथ धोने, सामाजिक दूरी आदि को बनाए रखने जैसे नियमों का पालन करे। आरंभ में ये हमें चुनौतीपूर्ण लग सकते हैं, पर इनका पालन करना मुश्किल नहीं है। यदि हमने ध्यान दिया हो तो पाएंगे कि ये तौर-तरीके हमारी अनेक पारंपरिक संस्कृतियों का हिस्सा रहे हैं। योग के प्राचीन दर्शन में न केवल शरीर का, बल्कि मन और आस-पास के परिवेश की स्वच्छता पर भी बहुत जोर दिया जाता है।
योग अथवा नियम का पहला सूत्र ही व्यक्तिगत स्वच्छता अर्थात शौच पर आधारित है। नैतिकता, स्वच्छता या शौच के बारे में है। महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों में यौगिक जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में शौच को पवित्रता और स्वच्छता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शौच का गहन अर्थ अनावश्यक शारीरिक संपर्क और अंतरंगता से बचना भी होता है। स्वस्थ और रसायन-मुक्त भोजन, जो हमें भीतर से स्वच्छ रखता है, खाने का हमारा आत्म-अनुशासन, शौच का पूरक है। इसमें पर्याप्त नींद लेना, व्यायाम करना, ध्यान करना और वह सब जो हमारे सिस्टम को शुद्धि की ओर ले जाता है, भी शामिल हैं। आसन, प्राणायाम और ध्यान को जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और कोरोना जैसे वायरस दूर रहते हैं।
उथल-पुथल वाले इस समय में अपने आप को सब से अलग रख कर हम इस वाइरस को एक-दूसरे में फैलने की संभावनाओं को कम कर सकते हैं। घर के भीतर रहें, यात्रा और सार्वजनिक समारोहों या सामुदायिक दावतों में जाने से बचें। यहां तक कि मैं समूहिक प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों से बचने की भी सलाह दूंगा। रीति-रिवाजों की तुलना में ध्यान और प्रार्थना (मनःस्तुति) ज्यादा श्रेष्ठ और प्रभावी हैं। आरोपित सामाजिक दूरी या स्व-संगरोध (कोरेंटाइन) को, अपने आप को मद्धम करने और भीतर जाने के अवसर के रूप में लें। यह हमें अपने आप पर ध्यान देने तथा अपनी भूमिकाओं और लक्ष्यों पर चिंतन करने का समय देता है। यह हमारे भागते-दौड़ते जीवन के नीरस पैटर्न को तोड़ने और दाहिने मस्तिष्क की गतिविधियों जैसे कि कोई रचनात्मक लेखन, खाना पकाना, संगीत, चित्रकारी या भाषा सीखने का एक बहाना भी है। यह दृश्य से आगे बढ़ कर, खोए हुए द्रष्टा को ढूँढने का समय है। विश्राम और गतिविधि के बीच संतुलन बनाने का समय है। जो हमेशा विश्राम में रहता है, वह जीवन में कभी प्रगति नहीं कर पाता है और जो हमेशा गतिविधियों में लिप्त रहता है, उसे गहन विश्राम का आनंद नहीं मिलता।
सामाजिक-दूरी कोई दंड नहीं है। मौन और एकांतवास, व्यक्तिगत विकास और आत्म-नवीकरण के लिए शक्तिशाली साधन हैं। एकांतवास के ही कारण संसार में अनेक महान कार्य घटित हुए हैं। अधिक से अधिक ध्यान करें तथा इस आरोपित एकांतवास को अपनी मानसिक शक्ति, रचनात्मकता, परानुभूति और उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपयोग करें। अब, जबकि हमें अपने परिवार के सदस्यों के साथ अधिक समय बिताने को मिल रहा है, तो उन्हें सुनें। कम बात करें और बहस से बचें।
अब तक, भारत ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। विपत्ति के इस काल में हमें एक-दूसरे का ख्याल रखने के साथ-साथ मिल-बाँट के रहना होगा। हमें अपनी चीजों को बड़े संयम से प्रयोग करते हुए उन लोगों की मदद करनी होगी जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। जो सक्षम हैं, मैं उन सभी से आग्रह करता हूँ कि अपने वेतन से कुछ राशि काट कर एक अक्षय निधि का गठन करें और अपने क्षेत्र में मजदूरी करने वाले दिहाड़ी मजदूरों और कम कमाने वाले लोगों का ख्याल रखें ताकि आर्थिक बोझ स्थानीय स्तर पर समाज द्वारा साझा किया जा सके। आइए खुद को और दूसरों को आश्वस्त करें कि हर एक का ख्याल रखने के लिए पर्याप्त मानवता है।
यह अनिश्चितता का एक अस्थायी दौर है। पहले भी मानवता ने इस तरह की आपदाओं से लड़ कर जीत हासिल की है। हम अतीत में सार्स, स्वाइन फ्लू और बुबोनिक प्लेग जैसी महामारियों से उबर के आए हैं। आश्वस्त रहें कि हम इससे भी निकाल आएंगे। मैं सभी से इस महामारी के बारे में निराधार सूचनाओं को प्रसारित करने से परहेज करने का अनुरोध करता हूं। हमें इस समय क्या घटित हो रहा है, इस विषय में अवगत रहने की आवश्यकता है, न कि कोरोना में ही हर समय डूबे रहने की। अंतहीन टीवी बहस और नासमझ सोशल मीडिया शेयर, अनिश्चितता को बढ़ावा देते हैं और चिंता एवं संत्रास (भय) का कारण बन सकते हैं।
कोरोना वायरस निश्चित रूप से दुनिया के लिए एक विपत्ति है, लेकिन इसका मतलब सर्वनाश नहीं है। निराशा के काले बादलों के पीछे चांदी की चमक वाली रेखाएँ, आशा की किरणों को जगाने के लिए पर्याप्त है। हमें इसी पर ध्यान देने की जरूरत है। वुहान में पक्षियों की चहचहाहट फिर से सुनाई पड़ना हो या लोगों के घर के भीतर रहने से आकाश और जल निकायों का स्वच्छ होना हो अथवा लोगों द्वारा अपना दिल खोल कर जरूरतमंदों को दिलासा देना हो, भले ही इससे नॉवल महामारी में हुए नुकसान की तुरंत भरपाई न हो पाए, पर अंततः इससे मानव जाति का भला ही होगा। निश्चित रूप से, यह संकट हमें साफ-सफाई, व्यक्तिगत स्वच्छता और स्वस्थ जीवन शैली के प्रति और अधिक संवेदनशील बना देगा।
समय के साथ हर घाव भर जाता है। आइए हम सब धैर्य, साहस और करुणा के साथ अपना समय दें।
23 मार्च, 2020 को दोपहर भारतीय समय से 12 बजे से लाइव ध्यान के लिए श्री श्री से जुड़ें। यहां से किसी भी पूर्व-रिकॉर्डेड निर्देशित ध्यान को आप चुन सकते हैं।
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