श्री श्री कई सामयिक और महत्वपूर्ण विषयों पर अंतर्दृष्टि साझा करते हुए विश्व यात्रा करते हैं। उन्होंने किताबें लिखी हैं जो सिखाती हैं और प्रेरित करती हैं। उनके प्रवचन प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं, आराम और आश्वासन देते हैं, और दैनिक जीवन के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

वैराग्य का अर्थ संसार से भागना नहीं है | Dispassion Does Not Mean Running Away from the World

जब आप वैराग्य में नहीं होते हैं तो क्या होता है? आप अतीत या भविष्य से जुड़े होते हैं इसलिए आप वर्तमान से शत- प्रतिशत जुड़े नहीं होते हैं| इसलिए आप अधिक विभाजित होते हैं। क्या आपको यह समझ आया? इसलिए जब आपका दिमाग भविष्य में किसी चीज़ की उम्मीद कर रहा हो या अतीत पर पछतावा कर रहा हो तो यह उस पल के साथ शत प्रतिशत नहीं है जिसका अर्थ है कि यह पहले से ही विभाजित है। जब आप पूरी तरह से केंद्रित होते हैं और आप दुनिया में कुछ भी कर रहे होते हैं तो आप हर पल शत प्रतिशत होते हैं। तो आप भोजन कर रहे हैं, आप शत प्रतिशत भोजन कर रहे हैं, उस समय आप अपने द्वारा लिए जा रहे सूप के हर घूंट को अनुभव कर सकते हैं, भोजन का स्वाद बढ़िया लगता है और हर दृष्टि में ताज़ा और नया होता है, इसलिए आपका प्रेम हर क्षण, प्रथम प्रेम की तरह है। आप किसी को भी देखें, कुछ भी देखें, चाहे वह एकदम नया ही हो वह बहुत ही आकर्षक लगता है|
वैराग्य में आनंद खोता नहीं है| वैराग्य आपको वह आनंद देता है जो कहीं और से नहीं मिल सकता | शंकराचार्य ने एक बहुत सुंदर बात कही है – “कस्य सुखं न करोति विरागा” ऐसा कौन सा सुख है जो वैराग्य से नहीं मिलता? इससे सारे सुख मिलते हैं है क्योंकि आप प्रत्येक क्षण वर्तमान में हैं| ये आपको शत प्रतिशत वर्तमान में रखता है | हर क्षण परम आनंद है | संसार में तथाकथित वैराग्य बड़ा शुष्क लगता है| जो लोग सोचते हैं कि वे बहुत ही प्रताड़ित हैं, उदासीन हैं, दुखी हैं, वे दुनिया से भाग जाते हैं और फिर वे कहते हैं, मैंने दुनिया को त्याग दिया है, यह कोई त्याग नहीं है। लोग, असफलताओं से, दुःख से, पीड़ा से बचने के लिए भाग खड़े होते हैं और स्वयं को कहते हैं कि वैराग्य में आ गये| वैराग्य बहुत बहुमूल्य है यदि आप वैरागी हैं तो आप बहुत केन्द्रित होंगे, आनंद से परिपूर्ण, पूरी तरह से संतुष्ट | हर व्यक्ति वैसा होना चाहेगा |

जब सिकंदर भारत आया तो उसे लोगों ने सलाह दी कि अगर कोई साधू सन्यासी मिले तो उसे यहाँ पकड़ ले आना| वहाँ के साधू बहुत कीमती हैं| तो उसने आदेश दिया कि साधु उसके समक्ष आये| उसने कहा पंडितों अगर तुम नहीं आये तो मैं तुम्हारा सर कलम कर दूँगा| जब लोग इस पर भी सहमत नहीं हुए तो उसने कहा अगर तुम लोग नहीं आये तो मैं तुम्हारी सारी किताबें, सारे वेद ले लूँगा| ऐसा उसने आदेश दिया | इस पर साधुओं ने कहा ठीक है, कल शाम को ले जाना| तो इन पंडितों ने क्या किया कि अपने शिष्यों को रात भर में सभी वेद कंठस्थ करवा दिए और पांडुलिपियां उठाकर सिकंदर को दे दीं और कहा कि ले जाओ अब हमें इसकी आवश्यकता नहीं है!
वह तो एक संन्यासी को पकड़ना चाहता था और संन्यासी आया ही नहीं। अंत में उसे उसके पास जाना पड़ा और उसने कहा, “ठीक है, तुम आ रहे हो या नहीं? अगर तुम मेरे साथ नहीं आये तो मैं तुम्हारे सिर को काट दूंगा । संन्यासी ने कहा- ‘मेरा सिर को काट दो, मैं देख लूंगा’ और फिर उसके बाद सिकंदर उस संन्यासी की आंखों में नहीं देख नहीं पाया| वह वैराग्य की शक्ति को बर्दाश्त नहीं कर पाया| यहाँ सिकंदर के सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसने पहली बार एक सम्राट की कोई परवाह नहीं की।

जब सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया, तो कुछ लोगों ने उसे सोने की थाली में सोने की रोटी भेंट की| उसने कहा कि मुझे भूख लगी है, मुझे रोटी दे दो, मैं भोजन करना चाहता हूँ। लोगों ने उससे कहा आप एक सम्राट हैं, आप गेहूं की रोटी कैसे खा सकते हैं? इसलिए हम आपके लिए एक सोने की रोटी लाये हैं। उसने कहा, ‘नहीं नहीं आप इस समय मेरा मजाक उड़ा रहे हैं? मैं भूख से मर रहा हूँ, मैं मर रहा हूँ, अब आप मुझे रोटी दे दें|’ तब लोग उसके लिए उसे रोटी लाए।

लोगों ने उससे कहा, क्या आपको यह रोटी नहीं मिलती है? और अगर आपको यह रोटी मिलती है तो फिर आपको पूरी दुनिया को क्यों जीतना है? इन सभी जगहों पर भी तो यही रोटी मिलेगी| आपने भी वही रोटी खाई जो हमने यहाँ खाई है| इस बात ने सिकंदर को एक पल के लिए हिला दिया। यह सच है। राज्य के बाद राज्य को जीतने में क्या बात है, आप सभी को शांति से, खुशी से रहना है और जब आपके पास वह शांति नहीं है, जब लोग आपकी देखभाल और चिंता नहीं कर रहे हैं, ऐसे में सभी गांवों और सभी शहरों पर आपकी मुहर का कोई मतलब नहीं है।

इसलिए सिकंदर ने कहा, “ठीक है, जब मेरी मृत्यु हो तो मेरा हाथ खुला रहना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि जो सिकंदर महान था, वह खाली हाथ जा रहा है। वह इस धरती से एक चीज़ नहीं ले जा सका।

तो वैराग्य में ऎसी शक्ति है। यहाँ तक ​​कि यदि ईश्वर या उनके दूत आकर धन आदि देने की कोशिश करें तो भी हमें उनसे कुछ भी लेने की आवश्यकता नहीं है। यही प्रपंच की ताकत है। मेरा मतलब है कि यह अहंकार नहीं है, यह केन्द्रित होना है। आप इतने केंद्रित हैं, इतने शांत हैं तभी आप समझ सकते हैं कि जो भी इस दुनिया में आए हैं, वे दुनिया को कुछ देने आए हैं, यहां से कुछ लेने के लिए नहीं। तब आप एक अलग ही भाव में होते हैं !