गुरु की विस्मयकारी शैली | The Strange Ways of Gurus
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एक बार की बात है, एक गुरु लोगों के समूह को दर्शन दे रहे थे। लोग उनके दर्शन करने आ रहे थे और सिर झुका कर आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। गुरुदेव अधिकतर समय मौन थे और जब भी कोई आकर उनको अपनी परेशानी बताता तथा गुरु से उत्तर की प्रतीक्षा करता, वह केवल एक ही बात बोलते “तुम बहुत भाग्यशाली हो”। एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला “मैं अपनी परीक्षा में असफल हो गया।” गुरुदेव बोले- “ठीक है, तुम बहुत भाग्यशाली हो”
-“मेरी पत्नी मुझे छोड़कर चली गई।” वे फिर बोले –
“तुम बहुत भाग्यशाली हो”
चाहे लोग कुछ भी परेशानी बता रहे हो- “मेरा कोई दोस्त मुझ से बात नहीं करता” या “मेरी नौकरी चली गई” गुरु देव सब से यही कहते कि वह बहुत भाग्यशाली है। हालांकि यह सबके लिए समान उत्तर था सबकी परेशानियों का, फिर भी आश्चर्य की बात यह थी कि वह सब लोग उत्तर पा कर प्रसन्नतापूर्वक जा रहे थे। जैसे कि मानो उनको अपनी परेशानी का सही समाधान मिल गया हो। कुछ देर बाद एक व्यक्ति आगे आया और बोला,” गुरुदेव मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली अनुभव करता हूँ और मैं बहुत कृतज्ञ हूं कि आप मेरे जीवन में हो।” जब गुरुदेव ने यह बात सुनी, तो वह नाराज हो गए और उस व्यक्ति को जोर से थप्पड़ मारा। यह भी विस्मयपूर्ण बात थी कि तब भी वह व्यक्ति आंखों में आंसू लिए कृतज्ञता से नाचता हुआ चला गया।
एक अन्य व्यक्ति जो काफी देर से यह सब देख रहा था। सब लोगों का व्यवहार देखकर पूरी तरह भ्रमित हो गया। परंतु पूरी तरह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, कि जाकर सीधे गुरुजी से कुछ पूछ सके, तो वह एक वरिष्ठ साधक के पास गया और विश्वासपूर्ण तरीके से पूछने लगा, “मैं यह सब जो देख रहा हूं उसका कोई अर्थ नहीं समझ पा रहा हूं। क्या आप मुझे इन सब बातों का अर्थ समझा सकेंगे?” गुरु के कार्यों की व्याख्या करते हुए (साधक ऐसा करने में बहुत आनंद प्राप्त करता है) साधक बोला,”गुरुदेव ने जो भी किया वह सर्वोत्तम था। पहला व्यक्ति जो परीक्षा में असफल हो गया, उसने सोचा कि वह भाग्यशाली है, क्योंकि अब वह और अधिक मेहनत करके पढ़ाई करेगा। जिस व्यक्ति की नौकरी चली गई या जिसके दोस्त उसको छोड़ कर चले गए, उनको आत्म निरीक्षण का अवसर मिल गया। जो लोग नौकरी में व्यस्त होते हैं, उनके पास आत्मनिरीक्षण का समय ही नहीं होता, और वह बहुत भाग्यशाली होते हैं जिनको जीवन की सच्चाई जानने का व यह सोचने का अवसर मिलता है कि “मैं कौन हूँ ?” जिसकी पत्नी उसको छोड़ कर चली गई, वह भी बहुत भाग्यशाली है, क्योंकि इससे उसको समझने का मौका मिलेगा कि उसने आपसी संबंधों में क्या गलतियां की हैं। उसके पास अभी अवसर है कि वह अपनी पत्नी की भावनाओं व भलाई के प्रति संवेदनशील हो सके और इसलिए वह गुरुदेव के शब्दों से प्रसन्न था।
मानवीय चेतना के तीन स्तर होते हैं। प्रथम तथा सबसे निचला स्तर है शुद्ध जड़ता का, जहां किसी को कुछ भी महसूस नहीं होता। दूसरा स्तर है जब कोई यह अनुभव करता है कि जीवन में दु:ख है। महात्मा बुद्ध लोगों को जड़ता की स्थिति से दुःख के प्रति जागृति की स्थिति में ले गए। प्रत्येक दुःख आप को जागृत करता है और आपके भीतर विवेक और विरक्ति की भावना उत्पन्न करता है। इसीलिए बहुत से लोग दुःख पड़ने पर आध्यात्मिक हो जाते हैं। तीसरा स्तर है, यह अनुभव करना कि यह जीवन आनंदमय हैं; यहां पर हमें गुरु तत्व की आवश्यकता अनुभव होती है। गुरु की उपस्थिति में दुख आनंद में बदल जाता है।
“परंतु जो व्यक्ति पहले से ही कृतज्ञता अनुभव कर रहा था उसको थप्पड़ क्यों मिला?”
“क्योंकि जब उसने कहा कि “मैं कृतज्ञ हूं” तो वह केवल “मैं” पर केंद्रित था, परंतु जब उस को चाँटा पड़ा तो उसको पता चला कि कृतज्ञता के लिए भी दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। गुरु ने उसको समझाया कि ‘मैं और तुम? दो? उठो, जाकर देखो यहां केवल एक ब्रह्म है।’ जब तुम यह अनुभव कर लोगे तब तुम्हारे जीवन में से सारे दु:ख दूर हो जाएंगे।
साधारणतया लोग दुनिया में होते हैं, परंतु वह जीवन नहीं जीते। केवल दुनिया में होना बिना जीवन के, यह जड़ता का प्रतीक है। ऐसे जीना कि तुम इस दुनिया में हो ही नहीं, यही प्रबुद्धता प्राप्त करना है।
शून्यता और पूर्णता- ध्यान और उत्सव, दोनों साथ-साथ चलते हैं। आज गुरु पूर्णिमा का दिन ध्यान और उत्सव दोनों को अनुभव करने का दिन है।
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