जन्माष्टमी का गहनअर्थ | The Deeper Meaning of Janamashtami
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हमारी प्राचीन कथाओं का यही सौंदर्य है कि वह न तो विशिष्ट स्थान और न ही विशिष्ट समय में बंधी हैं। रामायण और महाभारत केवल बहुत समय पहले होने वाली घटनाएं नहीं हैं, बल्कि यह तो हमारे दैनिक जीवन में लगातार घटती रहती हैं। इन कहानियों का सार शाश्वत है।
कृष्ण जन्म की कहानी का भी गहन अर्थ है। देवकी शरीर का प्रतीक है और वसुदेव जीवनी शक्ति (प्राण) का प्रतीक है। जब शरीर में प्राणों का संचार होता है तब आनंद (कृष्ण) की उत्पत्ति होती है। परंतु अहंकार (कंस) आनंद को समाप्त करने की कोशिश करता है। कंस देवकी का भाई है जो इंगित करता है कि अहंकार शरीर के साथ ही उत्पन्न होता है। जो व्यक्ति प्रसन्न और आनंदपूर्ण है वह किसी को पीड़ा नहीं देता, जो व्यक्ति अप्रसन्न और भावनात्मक रुप से घायल है वही दूसरों के लिए दु:ख का कारण बनता है। जो लोग यह अनुभव करते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है, वह अपने अहंकार पर ठेस लगने के कारण दूसरों के साथ भी अन्याय कर बैठते हैं।
अहंकार का सबसे बड़ा शत्रु आनंद है। जहां पर आनंद व प्रेम होता है, वहां पर अहंकार जीवित नहीं रह सकता और अपने घुटने टेक देता है। जिस व्यक्ति का समाज में बहुत ऊंचा स्थान होता है वह व्यक्ति भी अपने छोटे बच्चे के सामने पिघल जाता है। चाहे व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, यदि उसका बच्चा बीमार हो जाता है तो वह व्यक्ति भी थोड़ा असहाय अनुभव करता है। अहंकार प्रेम, सादगी और आनंद के समक्ष सरलता से पिघल जाता है। कृष्ण आनंद का प्रतीक हैं, सादगी और प्रेम का मुख्य स्रोत हैं।
कंस के द्वारा देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल देना, इस बात का प्रतीक है कि जब अहंकार बढ़ जाता है, तब शरीर कारावास के समान प्रतीत होता है। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तब जेल के पहरेदार गहरी नींद में सो गए। यहां पर पहरेदार हमारी पांचों इंद्रियां हैं, जो जागृत अवस्था में बहिर्मुखी हो कर अहंकार की रक्षक होती हैं। जब यही इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाती हैं, तब हमारे भीतर आंतरिक आनंद अंकुरित होता है।
कृष्ण को माखन चोर भी कहा जाता है। दूध को पोषक तत्व माना जाता है और दही दूध का परिष्कृत रूप है। जब दही को मथा जाता है तब मक्खन निकलकर ऊपर तैरने लगता है, यह बहुत पोषक होने के साथ-साथ हल्का व सुपाच्य होता है, भारी नहीं। इसी प्रकार यदि हमारी बुद्धि को मथा जाए, यह मक्खन की भांति हो जाएगी। जब बुद्धि में ज्ञान का उदय होता है तब व्यक्ति स्वयं में स्थित हो जाता है। ऐसा व्यक्ति दुनिया के आकर्षण से नहीं बंधता और उसका मन इसमें नहीं डूबता। कृष्ण का मक्खन चुराना प्रेम की महिमा को दर्शाता है। कृष्ण इतने मनमोहक है कि अपने प्रेम के आकर्षण में वह सब का चित् चुरा लेते हैं। यहां तक कि जो बिल्कुल निर्मोही हैं वह भी उनके मोह में पड़ जाते हैं।
कृष्ण अपने सिर पर मोर पंख क्यों लगाते हैं? एक राजा के ऊपर सारे समाज की जिम्मेदारी होती है जो कि एक बहुत बड़ा बोझ हो सकती है। वह राजा के सिर पर मुकुट के रूप में रखी होती हैं। परंतु कृष्ण अपनी सारी जिम्मेदारी एक खेल की तरह बिना किसी प्रयास के पूरा करते हैं। जैसे एक मां अपने बच्चे के सारे कामों को बोझ नहीं समझती, उसी प्रकार कृष्ण अपनी जिम्मेदारियों को हल्के तौर पर लेते हैं और अपने सिर पर लगे बहुरंगी मोरपंख के मुकुट की तरह जीवन में अपना चरित्र रंगों से भर कर निभाते हैं।
कृष्ण हम सब के अंतरतम में सर्वाधिक मनमोहक व आनंदाकाश हैं। जहां पर किसी भी प्रकार की बेचैनी नहीं है, चिंता और इच्छाएं मन को घेरे हुए नहीं हैं। यहां तुम गहन विश्राम कर सकते हो और इस गहन विश्राम में ही कृष्ण का जन्म होता है।
कृष्ण जन्माष्टमी का यही संदेश है कि यही समय है जब समाज में आनंद की लहर उठनी चाहिए। पूर्ण गहनता से आनंदमय हो जाओ!
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