कर्मों की गति न्यारी | Strange Are the Ways of Karma

अप्रैल 25, 2016 | , | 1 min read

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हाल ही में दिल्ली में हुए विश्व सांस्कृतिक महोत्सव का अग्रणी व मुख्य आकर्षण था कलाकारों की अविचल  प्रतिबद्धता। साधारणतया कलाकार गीले या अनुपयुक्त स्टेज पर प्रदर्शन करने के लिए मना कर देते हैं। कार्यक्रम के पहले दिन जब सारे कलाकार पूरी तरह गीले थे तब भी पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ वह अपना प्रदर्शन प्रस्तुत कर रहे थे। इस उत्सव में यह उनकी तपस्या थी। पूरी दुनिया से आए कलाकार, जो अपना खर्चा करके दूर दूर से आए थे, अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कई घंटो तक इंतजार करते रहे, चाहे अपने नृत्य-संगीत का प्रदर्शन का कुछ मिनटों के लिए ही उनको समय दिया गया था। कलाकारों की अति उत्साह पूर्वक मांग के कारण, विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के प्रभारी को सबको स्थान देने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा, जिससे सारे देशों को अपना कार्यक्रम प्रतिपादित करने का अवसर मिल सके।

कॉस्मिक रिदम डांस ड्रामा में लगभग ४६०० नर्तकों ने केवल एक सामूहिक अभ्यास के साथ ३० प्रकार के नृत्य अद्भुत तालमेल के साथ प्रस्तुत किये। इस खूबसूरत प्रदर्शन का अभ्यास केवल आभासी अभ्यास या वीडियो कांफ्रेंस के द्वारा महीनों तक किया गया।

अनोखी चुनौतियां | Unique Challenges

सारे प्रदर्शनों को स्थान देना, लगभग २५०० धार्मिक नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों की अलग-अलग आवश्यकतायों का ध्यान रखना कोई सरल कार्य नहीं था। एक धार्मिक समुदाय के मौलवी ने आग्रह किया कि यदि संगीत बजाया जाएगा तो वह स्टेज पर नहीं आएँगे। तो हमने एक घंटा बिना किसी संगीत कार्यक्रम के केवल वार्तालाप के लिए रखा।

इस उत्सव में भाग लेने के लिए लोगों का उत्साह अचंभित कर देने वाला था। हमें १९ मार्च २०१६ बेंगलुरु में वीणा वादन के लगभग २००० कलाकारों को ५० यंत्रों के साथ वाद्य-वृंद रचना के लिए जगह देनी थी परंतु हम ऐसा कुछ संचालन संबंधी कठिनाइयों के कारण नहीं कर सके।

उत्सव की समाप्ति के बाद से पूरी दुनिया से बहुत सारे देशों से निवेदन आया है और बहुत सी सरकारों ने कहा है कि ऐसा ही कार्यक्रम उनके देश में भी करवाया जाए।

संभावित आतंकवादी हमलों की सूचनाओं ने सभी को सतर्क कर दिया था। पांच अनजान लोग हमारे ऑफिस में आए और कहने लगे कि हम इंटेलिजेंस ऑफिसर हैं और हमें स्वयं के लिए ५० पास चाहिए जिससे कि हम सब जगह पर घूम सकें। हमारे मुख्य सदस्यों ने इंटेलिजेंस ऑफिस में बात की और पूछा कि आपने ऐसे कोई पांच ऑफिसर्स को भेजा है तो उन्होंने मना कर दिया, तब तक वो लोग गायब हो चुके थे।

उस समय यह अफ़वाह भी फैल रही थी कि कुछ राजनेता विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के मैदान पर गुंडों को लेकर आएंगे और परेशानी पैदा करेंगे। इस अफ़वाह को पुष्टि तब मिली जब कुछ राजनेताओं ने अपने फुसलाये हुए किसानों को कैमरे पर बुलाया और उनसे धरना करवाया जबकि उन किसानों की वहाँ कोई ज़मीन नहीं थी।

कुछ लोगों ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि लोगों का आना जाना आसान करने के लिए पोन्टून पुल बनाने के लिए हमने भारतीय सेना की मदद ली। भारतीय सेना को तो तब भी बुलाया जाता है जब एक बच्चा कुएँ में गिर जाता है। सरकारों की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह जनता की सुरक्षा ध्यान रखें। दिल्ली सरकार ने सही निर्णय लिया जो उन्होंने रक्षा मंत्रालय को पुल बनाने के लिए कहा। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की सरकारों ने भी पुल बनवाए थे।

विश्व सांस्कृतिक महोत्सव उस जगह के लिए खराब था यह कुछ सक्रिय कार्यकर्ताओं द्वारा फैलाये जाने के विपरीत दिल्ली को इस से कई लाभ हुए। उत्तर पूर्वी और दक्षिण भारत से आए बहुत सारे लोगों ने और विदेश से आए २० हजार पर्यटकों में कई लोगो ने दिल्ली को पहली बार देखा। वेबकास्ट द्वारा सीधा प्रसारण जो कि अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में दिखाया गया उसे इसे १.८ बिलियन (१ अरब ८० लाख ) लोगों ने ७ लाख जगहों पर देखा।

एक अभियांत्रिकी चमत्कार | An Engineering Marvel

इन सबके बीच में एक इतना बड़ा स्टेज (विशाल मंच) बनाकर हमने एक अभियांत्रिकी चमत्कार भी दिखाया क्योंकि इसकी कोई नीव नहीं थी। हमें यह निर्देश मिले थे कि ज़मीन में छेद नहीं करना है इसी के लिए हमने एक ऐसा मंच बनाया जो ४० फीट ऊंचा था लेकिन मेटल की प्लेट के ऊपर नलियों से जोड़ा गया था।

बिना नीव के मंच के सुझाव को लेकर इंजिनियर और अधिकारियों ने संदेह जताया। उन्होंने ने सोचा कि यह केवल एक मज़ाक है। यहां तक कि न्यायालय ने भी यही सोचा कि हम ज़मीन को खोदे बिना ऐसा मंच बना ही नहीं सकते। समारोह से 8 घंटे पहले हमें प्रधानमंत्री के लिए एक नया मंच बनाना पड़ा, क्योंकि उनके कार्यालय को उनकी सुरक्षा की चिंता थी। यह समझा जा सकता है क्योंकि किसी भी प्रगतिशील विचारों पर शुरू में कुछ विरोध होता ही है।

अनेक पाठ पढ़ाने वाली एक घटना | An event with many lessons

उत्सव के दूसरे दिन की सुबह मुख्य कार्यकर्ता मेरे पास आए और कहने लगे कि यह कार्यक्रम यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में स्थानांतरित कर दिया जाए क्योंकि मौसम विभाग की घोषणा के अनुसार शाम को फिर से तेज़ बारिश और आंधी तूफान आने की संभावना थी। उन्होंने बताया कि बारिश के कारण एल ई डी लाइट्स में और स्क्रीन में पानी चला जाने की वजह से शॉर्ट सर्किट हो सकता है। वह जगह बहुत गीली है और कीचड़ से भरी है और हमने उसके लिए कोई संघनन भी नहीं किया है। मुझे उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थी और वह मुझे समझाने में लगे हुए थे कि मैं जगह को बदल कर कार्यक्रम एक ऐसी जगह रखूं जहां सिर्फ १५000 लोग ही आ सकते थे।

मैं केवल मुस्कुराया और बोला कि कार्यक्रम उसी स्थल पर होगा। साधारणतया हम बहुत लोकतांत्रिक हैं और सब के विचार लेते हैं लेकिन इस घटना में मुझे अपनी बात मनवानी पड़ी।

कुछ ही क्षणों में सब की चिंता समाप्त हो गई और सब कहने लगे कि हम यह चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। उसके बाद से यह एक महान कार्यक्रम बन गया और प्रकृति ने भी हमारा पूरा साथ दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना है जिसने सब को बहुत सी सीख दी। जो लोग इस कार्यक्रम को नाकामयाब कर देना चाहते थे उनको भी यह पाठ पढ़ने को मिला कि सच्चाई की हमेशा जीत होती है और जो भी काम सच्चे दिल से किया जाता है उसको हमेशा सफलता प्राप्त होती है।

तत्व से परे | Beyond Matter

यह कार्यक्रम कई मजे़दार किस्सों से भरा हुआ है, चाहे वह जगह की बात हो, चाहे वो रहने का स्थान हो, चाहे वो सुरक्षा प्रबंध हो, चाहे वह वाहन की समस्या हो, पास, पार्किंग, भोजन और सबसे अधिक बैठने की व्यवस्था। एक पखवाड़े बाद पर्यावरणविद् व विद्वान् डॉक्टर राकेश रंजन, मेरे से मिलने आए और उन्होंने बताया कि जिस जगह विश्व सांस्कृतिक महोत्सव हुआ है, उस जगह पर आदि शंकराचार्य ने “यमुना-अष्टकम” लिखा था और यहां से ही चार धाम यात्रा शुरू होती थी। निश्चित रूप से इसीलिए इस जगह को आश्रम कहा जाता है।

रत्येक चीज़ जो भौतिक है उसमें आकाश तत्व समाया हुआ है। भौतिक जगत कारण और उसके परिणाम पर आधारित रहता है, जबकि सूक्ष्म और उद्दात्त कर्म द्वारा शासित आकाशीय तत्व को जानने के लिए गहन अंतर्ज्ञान और समझ की जरूरत है। जब यह ज्ञान भीतर आ जायेगा तो कोई भी बात हमें विचलित नहीं कर सकती।

परिशिष्ट भाग | Postscript

बुरी स्थिति के परिदृश्य में अधिकाधिक क्या हुआ होता? एन जी टी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) हमारे कार्यक्रम को रोक सकता था और हम संभवतः राजपथ पर दुनिया भर से आये हजारों कलाकारों के साथ मार्च कर चुके होते। वसुधैव कुटुंबकम का हमारा संदेश वैसे भी सभी और फ़ैल चुका था।

हालांकि आर्ट ऑफ लिविंग आज भी षड्यंत्र का शिकार है, यह बात तब और भी ज़्यादा उभर के आती और सारा मीडिया तब हमारे साथ होता।

इस उत्सव में पूरे समय जो एक बात दिखाई दी वो थी हजारों स्वयंसेवकों के चेहरे पर कभी समाप्त ना होने वाली मुस्कुराहट और आत्मविश्वास।

एक तरफ यह सब अविश्वसनीय था और दूसरी तरफ यही अपेक्षित था।

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