गणतंत्र दिवस : आध्यात्मिक दृष्टिकोण | A Spiritual Angle to the Republic Day
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हम अपनी माँ के गर्भ में एकांत में नौ महीने बिताते हैं। हमारे जन्म दिन से ही हम समाज के हो जाते है। ३ वर्ष के होने तक, हमारे अपने व्यक्तित्व की पहचान में हम घिरने लगते हैं और हमारा निजी व्यक्तिव बनने लगता है। हम अपनी पसंद और नापसंद के साथ अपनेआप को सीमित करने लगते हैं, अपने और अन्य लोगों के बीच में सीमारेखायें खींच लेते हैं, हम निजी और सार्वजनिक जीवन का भेद करना शुरू करते हैं और व्यक्तित्व में कुछ विशिष्टताओं का चुनाव कर लेते हैं। अधिकांश लोग, अपना पूरा जीवन दोहरेपन – एक निजी और एक सार्वजनिक तौर पर जीते है। हम अंदर कुछ ओर तथा बाहर कुछ ओर होते हैं।
जब जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण में विस्तार होने लगता है तो, हम एक खुली पुस्तक की तरह हो जाते हैं। यहाँ यह कह सकते है की हमारा निजी और बाहरी विश्व एक हो जाता है। जब अपने और दूसरे के बीच का भेद लुप्त हो जाता है, उस समय हम सामाजिक हो जाते हैं। फिर अपनेपन की भावना सबके साथ होती है और हमारे पास जो कुछ भी है उसे हम बांटने लगते है। हम वास्तव में फिर से एक बच्चे की तरह हो जाते हैं और उस वक्त फिर से हम गणतंत्र बन जाते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से, गणतंत्र दिवस सम्पूर्ण विकास की एक व्यक्तिगत घटना है।
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