नदियों का पुनर्जीवन, जीवन का पुनर्जीवन | Reviving Rivers, Reviving Life
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फरवरी २०१३ में, आर्ट ऑफ लीविंग (जीवन जीने की कला) के स्वयंसेवकों के एक छोटे समूह ने बैंगलोर के बाहरी क्षेत्र में, चार दशकों से अधिक समय से सूखी, कुमुदवती नदी को पुनर्जीवित करने हेतु एक परियोजना पर अमल करना शुरू किया। मैं हर्ष से यह सूचित करना चाहता हूँ कि कर्नाटक उच्च न्यायालय की लोक-अदालत ने उनके अच्छे काम की सराहना करते हुए राज्य के जिला प्रशासन को, जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए इसी परियोजना को दोहराने का निर्देश दिया है।
वनों की कटाई (वृक्षतोड), रेत माफिया और अनियोजित विकास गतिविधियों ने न केवल नदियों को प्रदूषित किया है, बल्कि हमारी जैविक-विविधता को विनाश के छोर पर लाकर खड़ा कर दिया है।अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण की रक्षा के लिए जागृत हों। कुमुदवती नदी कायाकल्प परियोजना ने बहुत कम व्यय के साथ उल्लेखनीय सुस्पष्ट परिणाम दिखाए है। इस परियोजना से २८१ गांवों को लाभ होगा तथा बैंगलोर शहर के पानी की आपूर्ति में वृद्धि होगी।
यह परियोजना शुरू करनेवाले स्वयंसेवकों के छोटे समूह को सरकार और स्थानीय आबादी के संशय व निराशावादी दृष्टिकोण का काफी सामना करना पड़ा। लेकिन वे आगे बढ़ते रहे और उन्होंने इस परियोजना की आवश्यकता को समझाने के लिए ग्रामीण जनता और सरकार के विभिन्न स्तरों पर जनजागृति कार्यक्रमों का आयोजन किया। यह परियोजना जैसे जैसे आगे बढ़ने लगी, सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक इससे जुड़ गए। ग्रामीण युवाओं के साथ टी शर्ट पहने हुए प्रसन्न शहरी युवाओं को फावड़ियों से खुदाई करते हुए देखना एक सुखद अनुभव था । इस परियोजना ने नागरिक-ग्रामीण संबध का सुखद और दुर्लभ दर्शन कराया है।
भूजल का बहुत अधिक मात्रा में क्षय करनेवाले कई सारे नीलगिरी के वृक्ष नदी तल में लगे थे। इन पेड़ो को उखाड़कर उनके स्थान पर ,हजारों पीपल, बरगद, नीम, कटहल और पोंगेमिया (pongemia) जैसे पौधों को परिवेश में लगाया गया। बोल्डर चेक (छोटे पत्थरों के बांध) भूक्षरण को नियंत्रित करने और मिट्टी की नमी बनाए रखने हेतु बनाए गए । इन सब और अन्य कई उपायों की मदद से जल्द ही भू-जल का स्तर ऊपर उठा और सतही जल में भी पुनरुत्थान हो गया । ४० वर्षों से मात्र मानचित्र पर अस्तित्व में रह गयी, यह नदी वापस जीवित होकर धरती पर आ गयी। उस पूरे क्षेत्र की संपूर्ण जैविक-विविधता अब पुनरुद्धार के मार्ग पर है।
इसी तरह की अनेक पुनर्जीवन परियोजनाएं हाथ में ली गयी, जैसे – कर्नाटक में अर्कवती, वेदवती और पलार नदियों की, तमिलनाडु में नागनदी की तथा महाराष्ट्र में घरणी, तेरणा, बेनीतुरा, तावरजा नदियों व बाभलगांव झील की; इनमें से कई परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं।
हजारों स्वयंसेवकों के अथक प्रयास और शाश्वत उत्साह से यह संभव हो पाया है। मैं बहुत सारे स्वयंसेवकों को देश और विश्व के अन्य भागों में भी इसी तरह की परियोजनाओं पर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करता रहता हूँ। यह ईश्वर और मानवता के लिए सच्ची सेवा है।
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