शांति हेतु चुनौतियों को पार करना | Overcoming Challenges to Peace

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अधिकतर मानव संघर्ष द्विपक्षीय होते हैं। चाहे कोई भी आक्रमण की पहल करे, अंततः दोनों पक्ष ही आहत होते हैं। मतभेद की शुरुआत ही तब होती है, जब दोनों दल अपने अपने मत पर अड़े होते हैं; झगड़े को सुलझाने के लिए, दोनों को ही ऊपर उठकर व्यापक रुप से उसको देखने की आवश्यकता है। आपसी वार्ता में अंतराल व बातचीत का टूट जाना मतभेद बढ़ जाने का बड़ा कारण है, परस्पर वार्ता मतभेदों को दूर करने का महत्वपूर्ण साधन है।

इस वर्ष जून में मैं जब लैटिन अमेरिका की यात्रा पर गया, तब हमने कोलंबिया के विद्रोही संगठन फार्क (कोलंबिया की क्रांतिकारी सशस्त्र सेना) के नेताओं को मिलने के लिए संदेश भेजा। उन्होंने सकारात्मक उत्तर दिया और क्यूबा में हमारी परिणामदायक मुलाकात हुई। पिछले ५ दशकों से कोलंबिया सरकार और फार्क संगठन के मध्य चल रहे सशस्त्र संघर्ष में, लगभग २,२०,००० जीवन गए और करीब ७ करोड़ लोग बेघर हो गए। यद्यपि बाह्य रूप से वे हिंसात्मक कार्यवाही में लिप्त हैं, तथापि हर अपराधी के भीतर एक पीड़ित छिपा है, जो मदद के लिए पुकार रहा होता है। जब पीड़ित का घाव भर जाता है, तो उनमें अपराधी तत्व मिट जाता है। मैंने उनको बताया कि मैं उनकी दुर्दशा को समझ रहा हूं, परंतु केवल अहिंसा ही इसका एकमात्र उपाय है। उन्होंने फौरन ही गांधीवादी नीति का अनुसरण करते हुए एकतरफ़ा संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। सरकार ने भी कुछ दिनों बाद संघर्ष विराम का समर्थन करते हुए युद्ध विराम कर दिया।

अन्याय के विरोध में जो लोग हिंसात्मक रवैया अपना लेते हैं, यदि उनके साथ सही रूप से संपर्क किया जाए तो वह बातचीत के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके परिपेक्ष्य से देखा जाए तो उनकी लड़ाई न्यायपरायणता के लिए होती है। इसके लिए उनके अंदर एक जुनून, प्रतिबद्धता और बलिदान की भावना होती है जो कि प्रशंसनीय है। यदि उनके अंदर भरपूर मात्रा में विद्यमान बाहरी गतिशीलता आंतरिक शांति से मिल जाती है, तो ऐसे लोग समाज के लिए वरदान सिद्ध होते हैं। हमारे बहुत से आदिवासी विद्यालय पूर्व चरमपंथियों द्वारा चलाये जा रहे हैं। हालांकि आरंभ में वह हमारे स्वयंसेवकों को धमकी देते थे कि इन शिक्षा संस्थाओं को बंद करो। परंतु जब उन्होंने देखा कि यह प्रयास उनके समाज के हित के लिए ही हैं, तो उन्होंने इस में योगदान देना आरंभ कर दिया और स्वयं भी स्वयंसेवक बन गए।

जबकि धर्मान्धता से निकला आतंकवाद बिलकुल अलग है। उनकी आँखों पर पट्टी बंधी रहती है और वे किसी भी प्रकार की बातचीत के लिए तैयार नहीं होते। उनके अनुसार जो लोग उनके सिद्धांतों को नहीं मानते या जो लोग उनसे अलग सोचते हैं, उनको जीने का कोई हक नहीं है।

नवंबर २०१४ में मेरी ईराक यात्रा के दौरान मैंने इस्लामिक स्टेट ग्रुप को बातचीत के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने प्रत्युत्तर में मुझे मौत की धमकी भेजी। यदि दुनिया में एक छोटा सा भाग भी इस तरह के अंधेरे में जी रहा है तो, उनके कारण पूरी दुनिया सुरक्षित नहीं रह गई। अब तक यह खतरनाक अत्याचार केवल एक सीमित स्थान पर हो रहे थे जो कि उनके प्रभाव क्षेत्र में थे, परंतु जो बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ, हजारों शरणार्थियों ने दुनिया के अलग-अलग कोनों में शरण लेनी शुरू कर दी, उस से पूरी दुनिया पर इन अत्याचारों का असर फैल गया। यदि आपके पड़ोस के घर में आग लग जाती है तो वह आग आपके घर तक भी पहुंचने में समय नहीं लगाती। इस धर्मान्धता के उन्माद को रोकने के लिये, धार्मिक नेताओं का बड़ा योगदान हो सकता है। वह सब को सर्व धर्म सम्मान की शिक्षा तथा शांति की सीख दे सकते हैं। “जन्नत को अपनी जागीर”  समझने वाले सिद्धांत से हटकर “एक लक्ष्य को प्राप्त करने के अनेक मार्ग” के सिद्धांत को स्वीकारना होगा। इस ग्रह पर रहने के लिए विविधता का सम्मान करना एक आवश्यकता है। इससे हम मतभेदों व दूसरों को झेलने की स्थिति से निकलकर विविधता को उत्सव की तरह मनाना सीख जाएंगे।


फार्क नेता इवान मार्केज़ ने क्यूबा में श्री श्री के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत को अपनाने के घोषणा की।

अशांति दुनिया काही एक अंग है, पर इस उथल पुथल में शांत रहना हमारी आत्मा का स्वभाव है । यदि हमारे भीतर मजबूत शक्ति व कौशल है, तो हम शांति में केंद्रित रहेंगे। यह अनुभव न केवल हमारे भीतर  ही सीमित रहेगा, बल्कि आसपास फैले हुए तूफान को थामने में भी सहायक सिद्ध होगा। इस अंतरराष्ट्रीय शांतिदिवस पर  हम भीतर से शांत हो कर अपने कार्यों में प्रभावशाली होकर बाहरी दुनिया पर भी इसका असर डालने का प्रयास कर सकते हैं।

[यह लेख हफ्फिंगटन पोस्ट में १८ सितंबर २०१५ को प्रकाशित हुआ था। : http://huff.to/1KoxGMm]

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