प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मेरी पहली मुलाकात | My First Meeting with Narendra Modi
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नई सहस्त्राब्दी के आरंभ की आहट के साथ-साथ यह अफवाह सब तरफ फैलने लगी की दुनिया समाप्त होने वाली है और इस तबाही की पूर्व सूचना ने पश्चिमी देशों में गहरे आतंक की स्थिति बना दी। लोग घबराहट में पागलों की तरह अपने घर बेचने लगे तथा खाने पीने के सामान को बड़ी मात्रा में जमा करने लगे और ऐसा कुछ नहीं होने वाला यह उनको समझाने तथा आश्वासन देने के लिए मैं एक छोर से दूसरे छोर पर घूम रहा था। शुक्र है दुनिया समाप्त नहीं हुई और सब पूर्ववत ही हो गया।
अगस्त २००० में न्यूयॉर्क शहर में मैं संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी विश्व शांति के शिखर सम्मेलन में वार्ता के लिए गया था। जिसका आरंभ संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफ़ी अन्नान ने किया। भारतीय उपमहाद्वीप से विशाल समूह वहां पर उपस्थित था। हालांकि ऐसा पहली बार हुआ था कि संयुक्त राष्ट्र के शिखर सम्मेलन में बड़ी संख्या में गेरुए वस्त्र पहने हुए स्वामी शामिल हुए थे।
भाषणों का, हिंदी को छोड़ कर, कई भाषाओं में अनुवाद का सीधा प्रसारण हो रहा था। बहुत से स्वामी और आचार्य, वहां होने वाली कार्यवाहियों को शायद ही, थोड़ा बहुत समझ पा रहे थे। इससे स्पष्ट रुप से उस समूह में हताशा और निराशा दिखाई दे रही थी। उस क्षण, मैंने महसूस किया कि हमारे अंदर बड़े-बड़े कार्यक्रमों को आयोजित करने का अधिक बेहतर संगठनात्मक कौशल है।
प्रत्येक वक्ता को बोलने के लिए केवल 5 मिनट का समय दिया गया था। मैंने अपना भाषण निर्धारित समय में पूरा कर दिया। मेरे बाद सत्यनारायण गोयनका जी बोलने आये, वह निर्धारित समय के समाप्त हो जाने के बाद भी बोलते रहे। चेतावनी की घंटी बजने लगी – एक बार, दूसरी बार, तीसरी बार, लेकिन तब भी वह बोलते रहे; अंततः उनको रोका गया तथा मंच पर से नीचे उतार दिया गया। इस घटना से भारतीय समूह को शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
कार्यक्रम समाप्त होने के बाद हम सब एक बड़े कक्ष में बैठे थे। एक आदमी नीले रंग के सफारी सूट में मेरे बिल्कुल सामने बैठा था। गोयनका जी उनके साथ में बैठे शिकायत कर रहे थे कि, १८ घंटों की यात्रा तय करके वह यहां आए और उनको आधा घंटा भी बोलने के लिए नहीं दिया गया। कुछ समय बाद डॉक्टर बी के मोदी ने, जो कि संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विश्व शांति शिखर सम्मेलन की तरफ से भारतीय उपमहाद्वीप के संयोजक थे, नीले सफारी सूट पहने व्यक्ति का परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रचारक श्री नरेंद्र मोदी के रूप में दिया। नरेंद्र मोदी ने मुझे अभिवादन किया और कहा कि आपका भाषण छोटा तथा सटीक मुद्दे पर आधारित था और सब इसकी प्रशंसा कर रहे हैं। मैं कह नहीं सकता कि वह मेरी सराहना कर रहे थे या सुबह हुई घटना पर अपना सूक्ष्म संदेश दे रहे थे। मैं मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। यह मेरी नरेंद्र मोदी से पहली मुलाकात थी।
दिसंबर २००१ में मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीनों बाद, मेरे पास मेहुल का फोन आया। मेहुल हमारा अहमदाबाद का एक संयोजक है, उसने मुझे बताया कि कुछ विश्वसनीय सूत्रों ने सूचना दी है कि मोदी सरकार के नए कार्यकाल में अशांति फैलाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही है। फरवरी २००२ में दंगे भड़क उठे। पूरा देश इस खबर से स्तब्ध हो गया तथा शोक, दुख और शक का वातावरण फैल गया। कोई भी, कारसेवकों की रेल में आग लगा देने के बाद भड़की हिंसा का सही अनुमान नहीं लगा सकता।
दंगों के ठीक बाद आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने राहत कार्यों तथा आपदा राहत शिविरों में सहायता पहुंचानी आरंभ कर दी। मैंने अहमदाबाद के कई शिविरों का दौरा किया जिसमें शाह आलम शिविर भी था। मैंने दोनों संप्रदायों की दुर्दशा की पीड़ा सुनी। वह एक डरावनी कहानी थी जिसमें भावनाओं की बाढ़ थी और उत्पीड़न का दर्द था। मैं मुख्यमंत्री से मिले बिना ही वापस बैंगलोर आ गया। हमारे राहत शिविरों में राहत कार्य कई महीनों तक लगातार चलते रहे।
मैं दोनों तरफ के प्रमुख लोगों से मिलता रहा तथा आपसी बातचीत व विश्वास कायम करने के प्रयास करता रहा। कुछ लोगों ने यह आरोप लगाया कि, संघ परिवार ने स्वयं ही अपने लोगों को रेल में जला दिया, जिससे अल्पसंख्यकों पर वार करने का झूठा षड्यंत्र रचा जा सके। मैं इस बात से सहमत नहीं था।
इस गंभीर वातावरण में मैं दूसरी बार नरेंद्र मोदी से मिला। २००४ में मैं दोबारा गुजरात गया। तब तक विरोध का स्पष्ट वातावरण तैयार हो चुका था। मोदी को सिरे से खारिज कर दिया गया था। उसको कोसना एक आम बात बन गई थी। जो लोग जरा सा भी इस राय से असहमत थे, उनको सांप्रदायिक या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या विश्व हिंदू परिषद का चमचा कहा जाने लगा।
मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं इस विषय में सीधी सटीक बात करूंगा। जैसे ही सब लोग शांत हुए तथा हमारी मीटिंग शुरू हुई, मैंने सीधा मोदी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, “क्या आपने दंगे रोकने के लिए अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग किया था?” मेरे इस प्रकार के सीधे प्रश्न से वह आश्चर्यचकित हो गए। अपना भावनात्मक संतुलन संभालने के बाद, वह नम हुई आंखों से बोले “गुरूजी क्या आप भी इस झूठे प्रचार पर विश्वास करते हैं?”
उसके बाद बोलने के लिए कुछ ज्यादा नहीं बचा। मैं समझ गया था कि इन दंगों में उनका कोई हाथ नहीं था। क्यों कोई मुख्यमंत्री अपने चेहरे पर कालिख़ पोतेगा और अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाएगा? इस बात की कोई वजह नहीं बनती। हम कुछ देर मौन में बैठे रहे। मैंने उनको सांत्वना दी कि सत्य उनके साथ है और एक दिन पूरा देश उन को पहचानेगा ।
आने वाले आगे के वर्षों में, मैं जब भी गुजरात जाता वह मेरे पास आते और कुछ क्षणों के लिए मेरे साथ ध्यान करते। अक्सर वह गांव में किए गए कार्यों के विषय में मुझसे चर्चा करते क्योंकि वह जानते थे कि ग्रामीण विकास मुझे बहुत प्रिय है। कभी कभी वह सत्संग में भी हमारे साथ भाग लेते। वह मां दुर्गा के कट्टर भक्त हैं और उनका प्रगाढ़ आध्यात्मिक पक्ष है,जिसके विषय में सब को ज्ञान नहीं है।
मैं सबसे पहले उनसे अमेरिका में मिला था, जहां बहुत वर्षों तक उनका स्वागत नहीं किया गया था। वह वहां अंतिम बार २००० में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में गए थे। इन १४ वर्षों में बहुत कुछ हो चुका है। उनकी वहां अगली यात्रा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्व प्रमुख व्यक्ति के रुप में होगी।
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