जल्लीकट्टू – उपद्रव से प्राप्त सबक | Jallikattu – Lessons from the Stir
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जल्लीकट्टू- उपद्रवी ऊर्जा को दिशा प्रदान करना आवश्यक है !
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि, स्वार्थपूर्ण प्रयोजन रखने वाले कुछ व्यक्तियों और संगठनों के अधिकारपूर्ण समावेश के कारण, जल्लीकट्टू के लिये “मरीना स्प्रिंग्स” जैसे एक स्वतःस्फूर्ण एवं न्यायोचित जन आंदोलन का अंत हो गया। चेन्नई में जो कुछ भी हुआ, उससे हमारी ऑंखें अवश्य खुल जानी चाहिये और हमें जन भावनाओं का सृजनात्मक रूप से प्रबंधन करने के लिये सबक लेना चाहिये।
अंत भला तो सब भला
ज्यादातर आन्दोलनकारी यह जान ही नहीं पाये कि जल्लीकट्टू पर अदालती रोक के बावजूद शासन को अन्य समाधानों के विषय में सोचने के लिए मजबूर कर देने की सफलता के आनंद का उत्सव कैसे मनाया जाए। विरोध और क्रांति का समुचित अंत होना भी आवश्यक है | इसके अभाव में, भारी जनबल और भावनाओं के वेग को आसानी से गलत दिशा की ओर मोड़ा जा सकता है। यदि इस शांतिपूर्ण आंदोलन की सफलता का शानदार उत्सव मनाया गया होता, तो इससे पहले कि अराजक तत्व युवाओं की अधीरता का दोहन करने के लिए आन्दोलन में प्रवेश करते, आन्दोलनकारी आगे बढ़ चुके होते। सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सामूहिक उत्सवों, सामुदायिक मेले एवं सत्संग आदि के साथ किया गये एक शानदार प्रयोजन द्वारा उस बेसब्र ऊर्जा को सरलता से एक सकारात्मक रूप प्रदान किया जा सकता था।
परंपरायें अब भी चलन में हैं
जल्लीकट्टू आन्दोलन अपने आप में ऐतिहासिक रहा। यह अपने आत्मगौरव एवं प्राचीन क्रीड़ा जल्लीकट्टू की रक्षा के लिए मूलतः विद्यार्थियों द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित एक अर्थपूर्ण विरोध प्रदर्शन था| यह उत्साहजनक था कि कुछ ही दिनों में बिना किसी संगठित प्रयास के आन्दोलनकारियों की संख्या एक लाख से भी अधिक पंहुच गई। अपनी संस्कृति पर इतना गौरव इस बात का सकारात्मक सूचक है कि हमारे युवाओं में अब भी देश की परम्पराओं के प्रति सम्मान है। मुझे बताया गया है कि जल्लीकट्टू को तमिल गौरव के साथ जोडने वाला एक गीत यू ट्यूब पर वायरल हुआ है, जिसे लाखों लोगों ने देखा है। जब युवा अपनी प्राचीन परम्पराओं पर गर्व करते हैं और उसे अपनी पहचान का एक हिस्सा बना लेते हैं तो इससे उनके जीवन में न सिर्फ गहनता आती है बल्कि जीवन में और बेहतर करने के लिए उनके भीतर शौर्य और साहस का संचार भी होता है।
असामाजिक तत्वों से सावधान रहें
जब तीव्र भावनाओं से भरे हुए हजारों लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं, तो यह एक ऐसे अवश्यम्भावी व उल्लासपूर्ण बल का रूप ले लेता है, जो सहज ही हर व्यक्ति के भीतर एक साहस की भावना भर देता है। ऊर्जा और उल्लासपूर्ण अवस्था के इस उन्माद में यह पूरी संभावना होती है कि विवेक काम न करे और स्वार्थी तत्त्व जन भावनाओं का दोहन कर सरलता से अपना स्वार्थ सिद्ध कर जायें। मैं इसे देख पा रहा था और इसी लिए जनता से बार-बार सतर्क रहने का आग्रह कर रहा था। चेन्नई की इस घटना ने दिखा दिया है कि सामाजिक न्याय के लिये होने वाले आंदोलनों को विघटनकारी तत्वों से बचाने के लिये बुद्धिमत्ता, धैर्य एवं दृढ़-निश्चय की आवश्यकता होती है।
उपद्रव पर नियंत्रण
सौभाग्यवश इस आन्दोलन से जुड़े सभी लोग इससे दूर हो गये और असामाजिक तत्वों के खराब इरादों को कामयाब नहीं होने दिया। हालांकि पुलिस कार्रवाई से बचा जा सकता था, परन्तु अंत में यह आवश्यक हो गया था।अब जब तमिलनाडु सरकार ने नया कानून के पारित कर जल्लीकट्टू के आयोजन की अनुमति दे दी है, तो हमें यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना होगा कि नन्दिया नाथने के इस पारंपरिक खेल को इसकी मूल भावना के साथ सुरक्षित रूप से आयोजित किया जाये। सरकार ने पहले से ही इस संबंध में निश्चित दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं, जिसमें सीसी टीवी द्वारा निगरानी एवं खेल आरम्भ होने से पूर्व बैलों की चिकित्सीय जाँच शामिल हैं। खेल में चोट आदि लगने से बचने के लिये सावधानी रखनी होगी। परंपरा, मानवीय सुरक्षा एवं पशुओं की रक्षा के बीच संतुलन में ही इस कार्यक्रम की सफलता का मूल मंत्र छिपा है। जल्लीकट्टू तमिलनाडु के अनेक भागों में पोंगल उत्सव की एक बेहद प्राचीन एवं लोकप्रिय कड़ी के रूप में मनाया जाता है| हमारी संस्कृति का आधार कृषि है। बैल खेत जोतने में किसानों की मदद करते हैं और इन्हें किसानों की जीवन रेखा माना जाता है। बैल परिवार के सदस्य माने जाते हैं और इनकी पूजा की जाती है। गौरव एवं प्रतिष्ठा के स्रोत के रूप में जल्लीकट्टू किसानों को देशी बैलों, जिनकी संख्या पिछले कुछ दशकों बड़ी तेजी से कम होती जा रही है, को जीवित रखने और इनका पालन-पोषण करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
प्रतिभा की परख
यद्यपि कुछ ऐसी घटनायें हुई हैं, जहाँ लोगों ने नियमों का उल्लंघन कर पशुओं के साथ क्रूरता का परिचय दिया है, परन्तु जल्लीकट्टू जैसे खेल में न तो पशुओं के साथ क्रूरता की जाती है और न ही इससे लोग घायल होते हैं। बल्कि यह तो एक ऐसा कौशल है जिसमें बड़ी मात्रा में योग्यता, एकाग्रता, शारीरिक क्षमता एवं धैर्य की परख होती है। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ में कंबाला नामक इसी प्रकार के एक अन्य खेल में खिलाड़ी नंगे पाँव १४५ मीटर की दूरी, हाथ में रस्सी पकड़े हुए जिसका दूसरा सिरा बैल के गले में बंधा होता है, के साथ मात्र १३.५ सेकेंड में पूरी करते हैं! इसका अर्थ ये हुआ कि वे १०० मीटर की दूरी ९.३१ सेकेंड में पूरी कर लेते हैं, जो कि ओलंपिक के ९.५८ सेकेंड के रिकार्ड से भी काफी कम है। इस प्रकार के खेलों पर रोक लगाने का अर्थ ग्रामीण युवाओं की प्रतिभाओं पर रोक लगाना है।
जल्लीकट्टू से परे
दुर्भाग्य से न्यायालय के समक्ष परंपरा के इन पहलुओं को समुचित रूप से नहीं रखा गया, परिणामस्वरूप पशुओं पर क्रूरता का आरोप लगा कर इस तरह के खेल पर रोक लगा दी गई। यदि पशु प्रेमी वास्तव में पशुओं के प्रति प्रेम प्रकट करना चाहते हैं तो उन्हें कत्लखानों एवं बूचड़खानों पर रोक लगाने पर ध्यान देना चाहिये। जल्लीकट्टू के दौरान सुरक्षा एवं संरक्षण नियम सख्ती से लागू किये जाने चाहिये और जो भी इनका उल्लंघन करे उन्हें दण्डित किया जाना चाहिये।
I support Jallikattu & request that the movement remains peaceful.Let's have patience while a fresh appeal is made in SC with correct facts.
— Gurudev Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) January 19, 2017
The 6-day peaceful Jallikattu protest is a victory for people of Tamil Nadu.Instead of celebration,unfortunate it's taken a violent turn.(1)
— Gurudev Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) January 23, 2017
I appeal to the people of Tamil Nadu to keep calm & not allow anti-social elements to hijack the peaceful nature of the Jallikattu movt. (2)
— Gurudev Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) January 23, 2017
भाषांतरित ट्वीट – @Srisri
मैं जल्लीकट्टू का समर्थन करता हूँ और अनुरोध करता हूँ कि आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाएं रखें। अब जबकि सही तथ्यों के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक नई अपील की जा चुकी है तो सभी लोग धैर्य रखें।
छ:दिवसीय शांतिपूर्ण आंदोलन तमिलनाडु के लोगों के लिए एक जीत है। उत्सव मनाने के बजाय इसका हिंसक मोड़ ले लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। (1)
मैं तमिलनाडु के लोगों को शांत रहने और जल्लीकट्टू आंदोलन की शांतिपूर्ण प्रकृति को सामाज-विरोधी तत्वों द्वारा न हथियाने देने की अपील करता हूँ। (2)
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