बहुस्तरीय लोकतंत्र | Layers of Democracy
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भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसमें एक अरब से भी अधिक लोग रहते हैं। हमारे यहाँ, प्रत्येक स्तर पर मतदान होते हैं- ग्राम पंचायत, जिला परिषद, ब्लॉक स्तर, राज्य स्तर तथा अंततः राष्ट्रीय स्तर पर भी। दुर्भाग्य से बहुत से लोगों का सब प्रकार के चुनावों के लिए एक ही मापदंड रहता है तथा प्रत्येक चुनाव में वे उसी एक दल को मत देते रहते है। परंतु प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग मुद्दे तथा उन के लिए अलग संभावनाएं होती हैं, अतः मात्र एक मापदंड से ही मतदान नहीं होना चाहिए। वस्तुतः लोकतंत्र की शक्ति इसी में निहित है कि यहाँ प्रत्येक क्षेत्र में अपने मुददों को स्वायत्तता से हल किया जा सकता है। इसके विपरीत,जब विभिन्न स्तरों की प्राथमिकताएं बाकी मुद्दों के साथ मिला दी जाती हैं, तो अव्यवस्था बढ़ जाती है। क्षेत्रीय दल जब राष्ट्रीय स्तर पर अपने को स्थापित करने का प्रयास करते हैं, तब उलझने और भी बढ़ जाती है तथा उन दलों के संकुचित दृष्टिकोण के रहते, अच्छी सरकार बनाने में अधिक बाधाएं आती हैं। मेरी लोगों को यही राय है कि वे देश के विभिन्न स्तरों पर प्रभावित करने वाले मुद्दों को स्पष्ट रूप से देखें।
गांव और तालुका स्तर पर मतदाता को, केवल दल को ही नहीं बल्कि स्थानीय उम्मीदवार की योग्यता व उसके जनता से जुड़ाव को देखना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं का उद्देश्य केंद्र में सशक्त नेतृत्व की स्थापना होना चाहिये। राज्यस्तर पर संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इन सभी चुनावों में उम्मीदवार के चरित्र और आचरण का महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर यदि अच्छे चरित्र या राष्ट्रीय दल की तुलना हो तो सशक्त राष्ट्रीय दल का चुनाव किया जाना चाहिए। इसी के साथ साथ, मैं सभी राजनीतिक दलों से यह अनुरोध करुंगा कि वह आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को चुनाव में टिकट ना दें। राजनीतिक दल ऐसे लोगों को चुनावों में इसलिए खड़ा करते हैं, क्योंकि इन लोगों का बड़ा वोट बैंक होता है। इसलिए हमें अच्छे लोगों का भी बड़ा वोट बैंक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
इन चुनावों में युवा मतदाताओं का बड़ा भाग है, इसलिए हमने अलग-अलग स्थानों पर इन मतदाताओं की सूची तैयार करने के लिए कहा तथा इनका रजिस्ट्रेशन कराने की मुहिम तैयार की। मैंने अपने उत्साही स्वयंसेवकों से हैप्पीनेस सर्वे करने के लिए कहा, जिससे पता चल सके कि कितने लोगों के पास वोटर पहचानपत्र हैं। हम अपने सर्वे के बाद यह देख कर हैरान रह गए कि दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों में लोगों के पास एक से अधिक वोटर पहचानपत्र हैं। वह दिल्ली में भी मतदान कर सकते हैं और उसके बाद दूसरे राज्यों के अपने चुनाव क्षेत्र में भी मतदान कर सकते हैं। यह राजनीतिक दलों के स्वार्थपूर्ण राजनीतिक हित की चाल है। जिस धृष्टता से एक राजनेता ने मतदाताओं को उंगली पर से स्याही का चिन्ह हटा कर पुनः मतदान करने की बात कही, यह खतरे की घंटी है। यह समय है, जनता के जागने का और ऐसे भ्रष्ट और अनैतिक तत्वों को बाहर का रास्ता दिखाने का है।
हमारे देश में बहुत से लोग अंधनिष्ठा में मतदान करते हैं- “मेरे दादा जी और पिताजी हमेशा इसी दल को मत देते थे, इसलिए मैं भी इसी को अपना मत दूंगा”। किसी भी दल पर अंधा विश्वास अब छोड़ देना चाहिए। हमें देश की वर्तमान अवस्था को देखते हुए उचित उम्मीदवार का चयन करना चाहिए; न कि किसी राजनैतिक दल से परिवार के पुराने संबंधों को देखकर मतदान करना चाहिए। वर्तमान समय में आर्थिक तथा व्यवसायिक उन्नति के मुद्दे अति महत्वपूर्ण है और इन क्षेत्रों में देश की स्थिति नाजुक है। भ्रष्टाचार और घोटालों ने सारी हदें पार कर दी है तथा कमजोर गठबंधन से बनी सरकार ही इस भ्रष्टाचार की जड़ है। इस समय की सबसे बड़ी मांग है – सशक्त व स्थिर केंद्र सरकार, जिससे देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके।
विशेषतः युवावर्ग को अपनी भावनाओं को संभालते हुए मतदान करना होगा, क्योंकि प्रायः युवा जल्दबाजी में भावुक होकर गलत चुनाव कर बैठते हैं। अधिकतर जो लोग अच्छे इरादों से मतदान करना चाहते हैं, उनका नजरिया भावनाओं के बादलों में धुंधला जाता है। आज के प्रतिभावान मतदाताओं की स्थिति भी अर्जुन के जैसी हो गई है। वह भावनाओं के झंझावात में फंस जाता है और साफ तौर पर परिस्थिति को देख नहीं पाता। भगवान कृष्ण का उसको संदेश था कि भावनाओं को एक तरफ रख कर धर्म को पूरा करो, महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो। एक सच्चा नागरिक होने के नाते हमारा भी धर्म है कि हम आने वाले राष्ट्रीय चुनावों में केंद्र में ऐसे सशक्त, निर्णयात्मक व अनुभवी नेतृत्व का चुनाव करें, जो देश को उन्नति तथा समृद्धि के पथ पर ले जा सके।
मेरा लोगों से आग्रह है कि वे इस बात की जिम्मेदारी लें कि इस बार उनके मित्र व परिवार का प्रत्येक सदस्य बुद्धिमत्ता से अपने मताधिकार का अवश्य प्रयोग करें। मतदान को पारिवारिक पिकनिक की तरह मनाएँ, जिसमें पूरा परिवार या बड़ा समूह बिना मौसम या ट्रैफिक की चिंता किए एक साथ मतदान करें। इस कार्य को पवित्र कार्य की तरह पूरा करें। यह चुनाव हम सब के लिए बड़ी परीक्षा की तरह है, परंतु मुझे पूरा विश्वास है कि इस परीक्षा में सफल होने के बाद हमारा देश वास्तव में विकसित होगा।
[नोट : यह लेख वृत्तपत्र टाइम्स ऑफ़ इंडिया में ७ अप्रैल २०१४ को प्रकाशित हुआ है।: http://bit.ly/PDtyT9]
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