विश्वास की डोर न टूटे | Keeping the Faith
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जीवन में प्रगति के लिए इन तीनों पर विश्वास आवश्यक है – स्वयं पर, समाज की अच्छाई पर तथा ईश्वर पर विश्वास। यद्यपि अभी हाल में हुई केदारनाथ की घटना, जिसमें अनेक निर्दोष लोग जीवन से हाथ धो बैठे, यह देखकर ईश्वर के अस्तित्व पर ही संदेह उठाने लगता है। यदि ईश्वर है तो, उसने अपने ही भक्तों के साथ ऐसा क्यों किया? ऐसे अवसरों पर विश्वास कमजोर पड़ जाता है और कुछ लोग तो ईश्वर पर विश्वास करना ही छोड़ देते हैं। जबकि यह ही वह अवसर होते हैं, जब विश्वास की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। हमें सदैव याद रखना चाहिए कि ईश्वर भेदभाव रहित है और किसी एक स्थान पर न रह कर सर्वव्यापी है। ऐसा अवश्य है कि तीर्थस्थानों पर उच्च ऊर्जा का संचार होता है, जिससे भक्तों के दिल को सांत्वना मिलती है और भीतर तक श्रद्धा जाग जाती है। जब कभी तीर्थ स्थलों पर ऐसी आपदाएं आती है तो; जो लोग वहां मृत्यु को प्राप्त होते हैं, वे तो ईश्वर को पा जाते हैं और जो लोग बच जाते हैं, वे ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उस ने उनके जीवन की रक्षा की। परंतु जिन लोगों के निकट संबंधी मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनके विश्वास के लिए यह परीक्षाकाल होता है। एक ही प्रश्न वे बार बार पूछते हैं कि “भगवान! तुमने ऐसा क्यों किया? क्यों ,क्यों?” और ऐसा होना भी स्वाभाविक है कि उनके मन में नकारात्मक भावना उत्पन्न हो जाए। जब आपके प्रियजन अकस्मात आपको छोड़कर चले जाते हैं, तो विश्वास हिल जाता है; परंतु ईश्वर पर अखंड आस्था ही उस हादसे की स्थिति से आप को बाहर लाने में सहायता प्रदान करती है। हमें अपना विश्वास खोकर कुछ भी प्राप्त नहीं होता। वास्तव में विश्वास ही आपदा की स्थिति में हमारे मन को थामे रखता है और हमें और अधिक दयनीयता व दोष देने की स्थिति में न गिराकर, संभाल लेता है। यही प्रार्थना का समय होता है। जब भय मन को घेर लेता है, तब प्रार्थना ही मन को स्थिर करती है। आओ हम सब मिलकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें, जो कि हादसे में अपने प्राण गंवा बैठे हैं और उनके परिवार वालों के लिए प्रार्थना करें, जिससे वह इस असीम दुख की स्थिति से बाहर आ सकें।
जो लोग इस हादसे में बच गये, आइए उनके लिए ईश्वर को धन्यवाद दें। इस आपदा के समय, स्वंयसेवक जिस लगन व निष्ठा से मदद के लिए आगे आये, उससे यह विश्वास मजबूत हो जाता है कि लोगों में बहुत अधिक मानवता की भावना है। अपराध और भ्रष्टाचार की कहानियां प्रायः समाचारों में सुर्खियों में होती हैं, परंतु समाज में अच्छाई है – इस बात पर से कभी भी विश्वास नहीं हटाना चाहिए। यदि हम केवल इसी बात पर विश्वास करते रहेंगे कि, इस समाज में सभी चोर और बदमाश हैं, तो हम कोई भी काम नहीं कर सकेंगे। आगे बढ़ने के लिए हमें लोगों पर और अपनी आसपास की दुनिया पर विश्वास करना ही होगा।
अंततः हमें स्वयं पर विश्वास करना होगा, हमें वे काम अवश्य करने ही चाहिए जिन को करने में हम सक्षम हैं। उदाहरण के लिए, हजारों लोग हमारे तीर्थ स्थानों की यात्रा पर जाते हैं, परंतु हमारे पास इतने साधन नहीं है कि हम वहां पर इतने सारे लोगों की सुविधाओं का ध्यान रख सकें। कुछ स्थानों को छोड़कर बाकी सब जगह देखरेख के अभाव में तीर्थ स्थल दयनीय स्थिति में हैं। हम प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह होने से रोक तो नहीं सकते, परंतु इनसे बचने की तैयारी जरूर कर सकते हैं। केदारनाथ सहित अनेक तीर्थस्थानों पर पक्की सड़के तक नहीं हैं। अमरनाथ जाने का रास्ता बहुत संकरा है और उसी पतले रास्ते से लाखों यात्री एक ही समय पर ऊपर भी चढ़ते हैं और नीचे भी उतरते हैं। यहां तक कि बालटाल वाला जो छोटा रास्ता है, वह भी पहाड़ी तराई में १४ किलोमीटर लंबा एक तरफा पथ है; जिसमें न तो कोई विश्राम स्थल, न ही आपातकालीन स्थिति या रुकावट के समय निकलने का कोई दूसरा रास्ता। जब इन तीर्थ स्थलों पर हजारों लोग दर्शनों के लिए आते हैं तो, वहां पर सब प्रकार की चिकित्सा सहायता, यातायात की सुविधा, तथा संचार व्यवस्था आदि की सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता है।
इसी के साथ, केदारनाथ आपदा से लोगों के मन में तीर्थ स्थानों पर जाने के प्रति जो भय की भावना धर गई है, उसे दूर करना आवश्यक है। हवाई दुर्घटना की खबरों से हम हवाईयात्रा करना नहीं छोड़ देते और न ही सड़क दुर्घटना के डर से सड़क पर चलना छोड़ते हैं। विश्वास के अभाव में, हम प्रत्येक घटना से भयभीत, स्वयं को खोया हुआ या आश्रयरहित अनुभव करने लगते हैं। कठिन परिस्थिति में हमारा छिपा हुआ साहस तथा क्षमता कई तरीकों से बाहर आ जाती है और हमारे भीतर का दृढ़ विश्वास हमें प्रत्येक विपत्ति का सामना मुस्कुराहट के साथ करने की शक्ति देता है।
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