आ गया फिर वही समय | It’s That Time Again

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समय जीवन के सर्वाधिक महान रहस्यों में से एक है। यह सर्वोत्तम कथावाचक है और समय जैसा कोई साक्षी भी नहीं है। यह बाह्य जगत का एक ऐसा निष्पक्ष सत्य है, जो सभी के लिए एक समान गति से दौड़ रहा है,परंतु व्यक्ति की मन:स्थिति के अनुसार यह धीमी या तीव्र गति से बीतता हुआ अनुभव होता है। समय दो घटनाओं के बीच का अंतराल है। एक स्तर पर देखा जाए तो प्रति क्षण सब कुछ परिवर्तित हो रहा है, जबकि दूसरे स्तर पर वास्तव में कुछ भी नहीं बदल रहा है। सीधा तर्क कहता है कि इन दोनों विरोधाभासी दृष्टिकोणों में से एक ही ठीक है, परंतु वास्तविकता यह है कि दोनों स्पष्ट रूप से सत्य हैं।

 

समय, मन व घटनाओं के मध्य बेहद जटिल संबंध है। घटनाओं की ही तरह समय भी मन पर प्रभाव डालता है। मन को समय एवं घटनाओं से मुक्त करना ही मोक्ष है। जब तक हम अपने आस-पास होने वाली सभी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं करते, तब तक हम इसके शिकार बनने से अपने आप को रोक नहीं सकते हैं।

 

प्रायः भूतकाल की घटनाएं और गलतियां मन को घेर लेती हैं, जिसके कारण पीड़ा व ग्लानि होती है। समय-समय पर सही दृष्टिकोण के साथ घटनाओं की समीक्षा, हमारे मन को उनसे मुक्ति के साथ साथ बहुमूल्य शिक्षा भी प्रदान करती है। नव वर्ष, पिछले वर्ष की घटनाओं का मंथन कर उनसे सीखने और फिर उत्सव के साथ आगे बढ़ जाने के लिए एक अच्छा समय होता है।

 

नव वर्ष के बदलते ही नवीनतम रुझान और फैशन की चर्चा होने लगती है। फैशन हर साल बदल जाता है परंतु ज्ञान का प्रचलन कभी समाप्त नहीं होता ; सचाई, गहनता एवं संवेदनशीलता जैसे गुण हमेशा प्रचलन में रहते हैं। अनवरत चलने वाले समय में कालहीनता को देखना, परिवर्तनशील घटनाओं के बीच अपरिवर्तनशीलता को पा लेना तथा मन के सभी प्रकार के कोलाहल को पहचान लेने वाली अ-मन की स्थिति ही, ज्ञान है, प्रज्ञा है। अपने आस-पास सामान्य सी प्रतीत होने वाली हर घटना को पहचानने की हमारी ये कला हर बात को एक संदर्भ प्रदान करती है। हम समय को घटनाओं से अलग नहीं कर सकते परंतु अपने मन को घटनाओं एवं समय से पृथक अवश्य कर सकते हैं और ऐसा करना ही ध्यान है।

 

घटनाओं एवं क्रियाकलापों में तल्लीन हो जाने में एक प्रकार का आनंद एवं रोमांच है और इसी तरह एक दूसरे प्रकार का आनंद स्वयं के भीतर विश्राम करने में भी है। जब तक हम इन दोनों का स्वाद न ले लें जीवन पूर्ण नहीं होता और इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति पूरी तरह से केंद्रित हो। कौन कहता है कि आध्यात्मिकता रोचक नहीं? आध्यात्मिकता जीवन के विरोधाभासों के मध्य तलवार की धार पर नृत्य करने जैसा है। यदि हम इस स्थान को जहां हाँ और न दोनों ही एक साथ सही हैं, को समझ सकते हैं तो हमारे भीतर एक नया आयाम, अनंत संभावनाओं का द्वार खुल जाता है।

 

करोंड़ों वर्ष आए और चले गए। असंख्य घटनाएं एवं अगणित लोग आए और गए, इसी प्रकार हम, जो कि अब आए हैं, एक न एक दिन चले जाएंगे। उठो, जागो ! जो सोया है वह उत्सव नहीं मना सकता। कहा गया है कि ‘समय किसी के लिए नहीं ठहरता’ परंतु जो शाश्वत के प्रति जागृत है, समय उनके लिये चल नहीं रहा।

 

इस बार कालातीत नव वर्ष के लिए शुभकामनाएं !

 

 

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