उम्मीदें रद्द, मौका चूकना | Hope Quashed, Opportunity Missed
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जब भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर आम आदमी पार्टी का उदय हुआ, तब देश में युवा और जोशीले नेता की संभावना उभरी, जो की राजनीतिक व्यवस्था की सफाई के विषय में संजीदा लग रहा था। यद्यपि इसकी शुरुआत एक गैर राजनीतिक आंदोलन के साथ हुई थी। मैं अरविंद केजरीवाल के इस दृष्टिकोण से सहमत हुआ कि यदि राजनीति में सफाई करनी है तो राजनीति में उतरना पड़ेगा। इसी कारण से मैं नक्सलियों को भी कहता हूँ कि वह गोलियों को छोड़कर वोट की शक्ति दिखाएं। मैं यह देख कर खुश हुआ कि बहुत से युवाओं ने झारखंड के पिछले विधानसभा चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
राजनीतिक दलों में चापलूस संस्कृति बन जाने के कारण आम आदमी के पास राजनीतिक व्यवस्था में घुसने का बहुत कम रास्ता बचा था। वह केवल मतदान ही कर सकता था। ऐसे समय में भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधिकरण को देख देख कर थक चुके करोड़ों भारतीयों के दिलों में नई पार्टी ने एक नई उम्मीद की किरण जगाई।
बेहतर भारत देखने की अभिलाषा में नई पार्टी में सदस्यता के लिए बहुत से युवाओं ने हस्ताक्षर किये। लोगों से लोगों का संबंध व जुड़ाव तथा उद्देश्य में ईमानदारी ने दिल्ली के मतदान को बड़ा रूप दे दिया। यह अच्छा था, बाद में उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में सरकार बनाई। लोगों ने उम्मीदें करी की नई सरकार भ्रष्ट नेताओं को अपनी पार्टी में स्थान नहीं देगी। यदि आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने सकारात्मक कार्यों के कारण गिर जाती तो भी लोगों के दिल में उनके लिए ऊँचा स्थान रहता। । परंतु उनको गलत सलाह दी गई कि दिल्ली में इस्तीफा दे कर वह देश भर में चुनाव लड़ें। उनके इस कदम ने दिखा दिया कि अरविंद भी अन्य राजनीतिक नेताओं से कुछ अलग नहीं है। उनकी छिपी हुई महत्वाकांक्षा और उद्देश्य सबकी नजरों के सामने आ गए।
घटिया प्रचार पैंतरे, स्वयं विरोधाभास, अत्यधिक महत्वकांक्षाएं और अधिकार जमाने की भावना ने आम आदमी की सकारात्मक पहचान को कलंकित कर दिया और बहुत से सम्मानित लोगों का पार्टी के प्रति मोह भंग हो गया और उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अब अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि वह खंडित जनादेश के साथ इन चुनावों में ठीक हैं और २ वर्ष के समय में ही मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार हैं । यह कठोर रवैया उन की देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के प्रति लापरवाही दिखाता है।
वह ४ दिनों के लिए गुजरात के दौरे पर गए और राज्य के विकास के मुद्दे पर घटिया आलोचना कर ,चले आये। इतने वर्षों में मैंने सारे गुजरात की यात्राएं की है। ९० की दशाब्दियों तथा २००० के आरंभ में सौराष्ट्र में बहुत ही कम पेड़ नजर आते थे। यह सूखाग्रस्त इलाका था और अक्सर लोग अपना घर चलाने के लिए मवेशी बेचते नजर आते थे। परंतु अब यहां हर जगह पर हरियाली नजर आती है। यहां पर पहले सिर्फ २ घंटे के लिए बिजली आती थी। अब यहां पर लगभग हर गांव में पानी और बिजली की सुविधा मौजूद है, और प्रत्येक व्यक्ति की मासिक आय दर में वृद्धि हुई है। हालांकि अभी गुजरात १०० % भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हुआ है, परंतु मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह पहले के गुजरात से बहुत बेहतर गुजरात है। केजरीवाल ने सच्चे बयान देने की जगह मोदी को नीचा दिखाने के लिए नाटकीय आधार पर बयान दिए। जिसको अभी स्वयं ठीक से खड़ा होना नहीं आया है उसको किसी के नृत्य की आलोचना करने का अधिकार नहीं होता।
यदि आप पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में मत दिए जाते हैं और यदि अरविंद वही सब करते हैं जो कि उन्होंने दिल्ली में किया तो यह देश के लिए पूर्ण आपदा की स्थिति होगी। भारत ऐसे किसी भी खतरे के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि यह पहले से ही कई आर्थिक पैमानों पर कमजोर ढांचे पर खड़ा है। हमें एक स्थिर सरकार की आवश्यकता है जिसमें केंद्र में मजबूत नेतृत्व हो। जिससे हमारी अर्थव्यवस्था वापस अपने रास्ते पर आ सकें और विकास को प्रोत्साहन मिल सकें।
राष्ट्रीय राजकरण में जाने की जल्दी में आम आदमी पार्टी ने अपने बनाए सारे सिद्धांतों के साथ समझौते कर लिए, आप को पहले अपना काम दिल्ली में अच्छी तरह कर के दिखाना चाहिए था और फिर समय के साथ-साथ देश के अन्य भागों में अपना कार्यक्षेत्र फैलाना चाहिए था। उनको पहले गांवों में जाकर पंचायत के चुनाव लड़ने चाहिए थे और नगर पालिका के चुनाव लड़कर समय के साथ मजबूत और प्रतिबद्ध दल जो की सरकार चलाने में सक्षम हो उन्हें तैयार करना चाहिए था। उनके यह करने से अन्य दलों को भी सीख मिलती कि भ्रष्ट और अपराधी लोगों को टिकट ना दिए जाएं। मजबूत नींव वाला राजनीतिक दल देश के लिए वरदान साबित हो सकता है। परंतु बहुत सारे विरोधाभासों के साथ आप पार्टी ने राजनीतिक सुधार के अपने लक्ष्य को गंवा दिया।
जब अरविंद केजरीवाल ने तीव्र सक्रियता के साथ भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन चलाया था तब बहुत से लोगों की कल्पना पर अधिकार कर लिया था। लोग उनको भारतीय राजनीति में एक अच्छे विकल्प के रूप में देखने लगे थे। परंतु उनकी हाल में की गई बातों से उन्होंने अपने साथ काम करने वाले लोगों का विश्वास भी तोड़ दिया और उन को नीचा दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वह देश के सामने एक विकल्प के तौर पर आए थे परंतु देश को विकल्पहीन छोड़ दिया।
[यह लेख ४ अप्रैल, २०१४ को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ है।: http://bit.ly/1fDZDnx]
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