सद्भावना की ध्वनि | A Tune of Harmony
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अकबरुद्दीन ओवेसी के भाषण के बाद बहुत बड़ा हंगामा हुआ। नफरत से भरा भाषण ही अपने आप में चौंका देने वाला है, परंतु श्रोताओं से इसे मिली प्रशंसा एक गम्भीर चेतावनी है। यह हमारे सदा विस्तृत होते समाज में एक संप्रदाय विशेष के विलगन के खतरे को दर्शाता है। ऐसे गलत ज्ञान और पथभ्रष्ट विचारधारा वाले लोग इसलिये हैं, क्योंकि ये केवल अपने समुदाय में ही रहते हैं। बाकि समुदायों से अलग रहने के कारण वे केवल एक ही प्रकार की विचारधारा का प्रसार करते हैं और बिल्कुल भी खुले विचारों के नहीं होते। इनके दूसरे संप्रदायों में ना तो मित्र होते हैं और न ही यह लोग एक दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं। ऐसे विचार जो कि ओवेसी ने प्रकट किये हैं, वो सार्वजनिक मंच पर तो खतरनाक हैं ही, घर के कमरे में भी ऐसी बात करना भारत की एकता के लिये विष के समान है।
इसलिये, धर्म के आधार पर बने विश्वविद्यालयों का बंद होना आवश्यक है। केवल विश्वविद्यालय ही वे स्थान हैं जहां पर लोग दूसरे संप्रदाय के लोगों के साथ काम करते हैं और बड़े होते हैं। परंतु सरकार ने वोट बैंक की राजनीति की आड़ में धर्म पर आधारित संस्थान बना दिये हैं। ये संस्थान और अधिक ओवेसी ही पैदा करेंगे, जो कि केवल अपनी छोटी सी दुनिया के विषय में ही सोचते हैं। ये देश के बाकी समाज के साथ समन्वित होना नहीं चाहते और ये बात देश के हित में नहीं है।
अब इस मानसिकता को कौन बदल सकता है ? कानून तो निश्चित रूप से नहीं। यदि इसे जेल में डाल दिया जाये, तो यह अपने संप्रदाय के लोगों के बीच हीरो बन जायेगा। हिंदू कुछ बोल नहीं सकते, क्योंकि यह दोनों संप्रदायों के बीच और अधिक ध्रुवीकरण पैदा कर देगा। तो जिस विशेष विचारधारा के लिये वो काम कर रहा है, उसे कौन सुधार सकता है? ऐसे लोग तभी बदल सकते हैं, जब इन को समझाने का काम इन्ही के संप्रदाय के उदारवादी तथा सफल लोग करें। अब समय आ गया है कि ये उदारवादी लोग अपनी बैठक या ड्राइंग रूम से बाहर निकल कर, लोगों तक पहुंचें, युवाओं को संबोधित कर उनकी मानसिकता को बदलें और अपना प्रभाव दिखायें।
जब मैंने विश्व हिंदू परिषद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के साथ मीटिंग कर अयोध्या विवाद पर समझौते के लिये प्रयास किया, तो मैंने देखा कि दूसरे समुदायों के लिये वास्तविक हित की भावना के स्थान पर वहां लोगों के अपने स्वार्थ पूर्ण हित अधिक थे। वहाँ किसी भी नतीजे पर पहुंचने की इच्छा की जगह, हठधर्मिता अधिक थी। इसलिये, व्यापक हित चाहने वाले परिपक्व विचारधारा वाले लोगों को अवश्य आगे आकर दूसरों को शिक्षित करना चहिये, ताकि सही विचारधारा जागृत हो पाये। अन्यथा ओवैसी जैसे लोग क्रोध और घृणा पैदा कर लोगों के प्रतिनिधि बन बैठेंगे।
हैदराबाद से पूर्णत: विपरीत, आंध्रप्रदेश का ही एक अन्य शहर कडपा, बिल्कुल ही भिन्न है। यहाँ प्रत्येक वर्ष हजारों मुस्लिम भक्त ‘उगादी’ (नूतन वर्ष का पर्व) के दिन भगवान वेंकटेश्वर का पूजन कर नया साल मनाते हैं। यह मंदिर की 300 साल पुरानी प्रथा है। इसी प्रकार बहुत से हिंदू गुरुवार और शुक्रवार के दिन ‘अमीन पीर दरगाह’ में जाते हैं।
कई सदियों से भारत ने अपनी संस्कृति में बहुत से अलग-अलग मतों को संजोया है। राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा और लोभ से ग्रस्त होकर अथवा मात्र अज्ञानतावश कुछ लोग जनप्रतिनिधि होने का दावा करते हैं और अराजकता फैला कर निजी स्वार्थ सिद्ध करते हैं। समझदार और सदाचारी लोगों को इनकी आवाज़ को दबाना होगा। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने गौरवशाली अतीत और सुनहरे भविष्य के लिये राष्ट्र में सद्भावना बनाये रखें।
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