संपूर्ण का एक अंश | A Part of the Whole

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“हर घटना के पीछे, ज्ञान है।

हर व्यक्ति के पीछे, प्रेम है।

हर वस्तु के पीछे, अनंत है। ”

विश्व संस्कृति महोत्सव (WCF) से ठीक एक महीने पहले पुणे में आयोजित एक समारोह से लौटते समय एक युवा आयोजक जो गाड़ी चला रहा था, ने कहा, “सब कुछ कितने आराम से हो गया।’’ मैंने मज़ाक किया, “मैं सोच रहा था कि मेरी गाड़ी एक युवा चला रहा है जिसे चुनौतियों से प्रेम है,न कि कोई प्रौढ़। ” मैंने यह यूँ ही कह दिया था कि चुनौतियों की अनुपस्थिति में, सब कुछ बहुत उबाऊ हो जाता है। इस पर कार में बैठे सभी लोग खूब हँसे!

और फिर इसके बाद आया, चुनौतियों से भरा हुआ – विश्व संस्कृति महोत्सव (WCF) !

इतनी बड़ी संख्या में विश्व भर से आने वाले लोगों को समायोजित करने के लिए दिल्ली में कोई उपयुक्त स्थान ढूँढना, एक वास्तविक चुनौती थी; क्योंकि अधिकांश विकल्प या तो सुविधाओं से बहुत दूर थे अथवा वहां पहुंचना सरल न था। पिछली बार जर्मनी में आयोजित WCF के समय हमें ये समस्या नहीं आई थी, क्योंकि उस का आयोजन बर्लिन के मध्य स्थान पर हुआ था।

समारोह के लिए भारत सहित विश्व भर से मिलने वाला प्रतिसाद इतना अधिक था कि कोई भी स्टेडियम छोटा पड़ने ही वाला था, यहां तक कि दिल्ली के हमारे स्वयंसेवकों के लिए भी वो छोटा पड़ जाता। इसलिए, हमने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से संपर्क किया, जिसने हमें यमुना के तट पर भूमि का उपयोग करने की अनुमति दी। वह स्थान गंदगी, मलबे और दुर्गंध से भरा हुआ था। हालांकि हम जानते थे कि इस आयोजन के लिए उक्त स्थान को उपयुक्त बनाने के लिए अत्याधिक परिश्रम करना पड़ेगा, फिर भी हमने इस कार्य को हाथ में ले लिया ।क्योंकि हमें लगा था कि यह केंद्र और दिल्ली सरकार को नदी की सफाई करने के लिए प्रेरित करेगा। भारत में, दबाव में बेहतर कार्य होता है।

और अब शुरू हुआ खेल!

समारोह में सिर्फ एक मास शेष था, मंच (स्टेज) लगभग बन चुका था और निमंत्रण लगभग बँट चुके थे। कुछ समाजसेवी कार्यक्रम स्थल में बदलाव चाह रहे थे और इसीलिए उन्होंने नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) में यह आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करा दी कि इस कार्यक्रम से यमुना के बाढ़ के मैदानों को नुकसान पहुँचेगा। शिकायतकर्ताओं का रवैया ऐसा था, मानो कि वे मसीहा हैं और आर्ट ऑफ लिविंग एक अपराधी है। उनका ये रवैया आसानी से किसी को भी गुमराह कर सकता था। हमें इस बात पर गौर कर उसे सुधारने की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण के लिए लगातार काम करने वाले संगठन को एक अपराधी की तरह कटघरे में खड़ा कर दिया गया था, जबकि हमारे खिलाफ शिकायत करने वाले लोगों का पर्यावरण संरक्षण के प्रति कोई ट्रैक रिकॉर्ड ही नहीं था।

एनजीटी की एक समिति ने बिना किसी वैज्ञानिक मूल्यांकन के केवल परिकल्पना के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि इस कार्यक्रम से यमुना के बाढ़ के मैदानों को १२० करोड़ रुपए की क्षति होगी। जब मंच निर्माणाधीन था, तभी मात्र एक घंटे के सर्वे के बाद समिति इस विशाल आंकड़े पर पहुँच गई थी।

इसके बाद हमारे एनजीटी की एक खंडपीठ ने हमारे ऊपर ५ करोड़ रुपये का मुआवजा लगा दिया (जिसे मीडिया ने दंड की तरह लिया) जबकि हमने सभी आवश्यक अनुमतियां ले रखी थीं और हम सभी दिशानिर्देशों का पालन भी कर रहे थे। यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण था। यह ठीक उसी तरह है, जैसे कि हरी बत्ती पर ड्राइविंग करने वाले का चालान काटा गया हो। गंगा, यमुना और अन्य नदियों में बिना किसी रोक-टोक के गिरने वाले अनगिनत सीवरेज नालों की तुलना में एक तीन दिन के कार्यक्रम से क्या नुकसान हो सकता है? खुले आम पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले दूसरे लोगों के बारे में ये समाजसेवी क्या कदम उठा रहे हैं ? विश्व संस्कृति महोत्सव की पूर्व संध्या पर आने वाले एनजीटी के अंतरिम आदेश ने हमें कठिनाई में डाल दिया था।

बाढ़ के मैदानों में अनेक स्थायी निर्माणों के प्रति आँखें मूंद लेने वाले समाजसेवी हमारे कार्यक्रम के आयोजन में रोड़े अटकाने के लिए अति सक्रिय हो गए थे। स्पष्ट था कि वे आर्ट ऑफ लिविंग को अलग-थलग कर के इसे अपना निशाना बना रहे थे। आख़िर उनके इरादे क्या थे?

मैं लोगों को अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करता रहा हूँ , तो स्वयं इस अन्यायपूर्ण फैसले के आगे नहीं झुक सकता था। यह पैसे के बारे में नहीं है, बल्कि न्याय के लिए खड़े होने के बारे में है। हम यह लड़ाई अंत तक लड़ेंगे।

मीडिया का हस्तक्षेप

मीडिया के कुछ वर्गों ने भी हमारी छवि बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सूक्ष्म दृष्टि से जाँच करने की अपेक्षा, उन्होंने तो उनके खोखले और ओछे आरोपों को गलत नहीं माना।

एक विशेष राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ एक अंग्रेजी समाचार पत्र आर्ट ऑफ लिविंग की छवि को खराब करने के लिए इस कदर अधीर था कि उसने कार्यक्रम की आयोजन तिथि से लगभग एक माह पूर्व मृत्यु को प्राप्त संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सचिव जनरल बुतरस बुतरस घाली की सहअध्यक्षता का संदर्भ लेते हुए यह तक कह डाला कि इनके कार्यक्रम की रिसेप्शन कमेटी में एक मृत व्यक्ति भी था। उसने संसार के सबसे सम्मानजनक राजनेताओं में से एक के प्रति भी अपनी पूरी मर्यादा एवं सभ्यता त्याग दी। इसी अखबार ने स्वयंसेवकों के एक चित्र जो कि एकत्र किए गए कचरे के ढेर के साथ डिस्पोजल ट्रक की प्रतीक्षा कर रहे थे, को ‘कूड़ा फैलाने की कला’ शीर्षक के साथ प्रकाशित किया !

पूर्वाग्रह से ग्रसित एवं नकारात्मक प्रचार के कारण लोगों का उन पर विश्वास करना स्वाभाविक था। एक वरिष्ठ पत्रकार ने यह संकेत करते हुए टिप्पणी की कि आर्ट ऑफ लिविंग, दिल्ली के राजनीतिक चक्रव्यूह में फँस गया है, जबकि वास्तविक लक्ष्य तो सरकार है।

गतिविधियों में कुशलता

हमारे स्वयंसेवकों एवं शिक्षकों द्वारा इन सभी चुनौतियों को कुशलतापूर्वक सामना किया जाना चाहिए था, जो उन्होंने बखूबी किया। जबकि काफी लोग इस फैलाए गए झूठ से आहत भी हुए, पर वे सीखे हुये ज्ञान को अभ्यास में लाये। उकसाने के बावजूद वे शांत रहे और खुद को नकारात्मकता और क्रोध में लिप्त हो जाने से बचाया। हालांकि उनमें से कुछ अत्यधिक न्यायसंगत होने के कारण थोड़े हठी लगे थे।

१३ मार्च २०१६ को कार्यक्रम के समापन के बाद, मैंने स्वयंसेवकों को एक दिन का आराम कर के अगले दिन से साफ-सफाई शुरू करने के लिए कहा। उनकी प्रतिबद्धता इतनी ज्यादा थी कि वे १४ मार्च को ही सुबह ८ बजे मैदान पर आ गए थे! मनोबल को तोड़ने के बजाय, चुनौतियों ने हमारे स्वयंसेवकों के उत्साह को और बढ़ा दिया था।

कुछ लोग कहते हैं कि मैंने सरकार से सहायता ली है क्योंकि मोदी जी मेरे निकट हैं। इसका अर्थ यह है कि वे लोग न तो मोदी जी को और न ही मुझे अच्छे से जानते हैं। मैंने संसार भर में यात्रा की है और इन ३५ वर्षों में, मैंने कभी किसी से सहायता नहीं मांगी है। साथ ही, मोदी जी भी किसी को अनुगृहित न करने के लिए जाने जाते हैं।

जब पिछले साल दिसंबर माह में मैंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, तो मैंने उनसे कार्यक्रम का उद्घाटन करने का अनुरोध किया और पूछा कि क्या यमुना में गिरने वाले १७ नालों को रोका जा सकता है, ताकि बदबूदार गंध को रोका जा सके। उन्होंने अपनी कठिनाई साझा की, क्योंकि मामला दिल्ली सरकार के अधीन था। मैंने दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल से भी यही पूछा। अपनी उपस्थिति की पुष्टि करते हुए, उन्होंने कहा कि नालों को रोकने में कम से कम दो वर्ष लगेंगे।

आर्ट ऑफ़ लिविंग एक गैर-राजनीतिक संगठन है और हमेशा सभी पार्टियों के लोगों का स्वागत करता है। तथापि, कुछ पार्टियां हमारे विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रसित रहती हैं। जब हम श्रीमती सोनिया गांधी और श्री राहुल गांधी को आमंत्रित करना चाहते थे तो उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलना असंभव साबित हुआ। अंतत: हमारे ट्रस्टियों को उनके कार्यालयों में निमंत्रण छोड़ना पड़ा। जहां एक ओर अनेक देशों के सत्तारूढ़ और विपक्षी सदस्यों ने कार्यक्रम में भाग लिया, भारत के ही कुछ दलों ने भाग न ले कर अपने छोटेपन को दर्शाया एवं विश्व से जुड़ने का अवसर खो दिया। शायद ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ हो कि उन्होंने कार्यक्रम का लाभ पूरी तरह से सरकार को दे दिया था। यहां तक कि यह भी सूचना मिली कि एक प्रसिद्ध धार्मिक नेता ने पर्दे के पीछे रह कर दूसरों को भी इस कायर्क्रम में भाग लेने से रोका था।

अप्रत्यक्ष कृपा

बिल्ली के भाग छींका टूटा- कहावत के अनुसार सब कुछ अपने आप ही हो रहा था! यदि कोई विवाद नहीं हुआ होता तो इतना बड़ा कार्यक्रम बिना किसी बहस के चुपचाप घटित हो गया होता। यद्यपि ऐसा पहली बार हुआ है कि आर्ट ऑफ लिविंग किसी विवाद में उलझा, पर इससे न केवल लोगों को इस कार्यक्रम के बारे में जानने में मदद मिली, बल्कि लोगों को कार्यक्रम के पक्ष में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मंच भी मिला। जब टीवी चैनलों ने लोगों की राय पर मतदान किया कि कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, तो लोगों ने भारी बहुमत से सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।

संसार को एकजुट करने के हमारे सपने के एक भाग के रूप में हर एक व्यक्ति को जिसमें सभी दूतावासों और देशों के प्रमुख भी शामिल थे, को आमंत्रित किया गया था। ज़िम्बाब्वे, एक ऐसा देश जहां बड़ी संख्या में आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य हैं, के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया और अपने कैबिनेट के 37 सदस्यों के साथ इस कार्यक्रम में भाग लेने की आशा व्यक्त की।

जब उनके कार्यालय ने हरारे में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सभी तीनों दिन उनके भाग लेने की योजना की घोषणा की, तो एक तूफान सा आ गया। यूरोप और अमेरिका में हमारे आयोजक उत्तेजित हो कर हमें कॉल करने लगे कि अनेक प्रतिष्ठित लोग, जो इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले हैं, नाराज़ हो गए हैं और अब वे अपना नाम वापस ले रहे हैं। WCF में भाग लेने वाले करीब सौ जाने-माने नेताओं ने अपनी असुविधा व्यक्त करना आरंभ कर दिया था। विश्व संस्कृति महोत्सव को केवल एक भारत-अफ्रीकी सम्मेलन के रूप में सिमट जाने का जोखिम था! यहां तक कि मुझे भी राष्ट्रपति मुगाबे के साथ मंच साझा न करने की सलाह दी गई थी, जिसे मैंने नहीं माना। हालांकि हम चाहते थे कि सभी आएं परंतु यूरोप और अमेरिका का विरोध हमारे आयोजकों से सम्हल नहीं रहा था। आखिरी घड़ी में किसी देश के मुखिया से निमंत्रण वापस लेना संभव न होने के कारण हम बुरी तरह से फँस चुके थे।

जब भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने एक बधाई संदेश भेजते हुए समारोह में भाग लेने में अपनी असमर्थता व्यक्त की तो यह हमारे लिए सबसे बड़ा वरदान साबित हुआ! हमने राष्ट्रपति मुगाबे के कार्यालय में फोन कर सूचित किया कि चूंकि मेजबान देश के राष्ट्रपति समारोह में भाग नहीं ले रहे हैं तो हम उनके योग्य सही प्रोटोकॉल उपलब्ध नहीं करा पाएंगे, अत: उनका आना उचित नहीं होगा। उन्होंने अपनी यात्रा रद्द करने का निर्णय ले लिया। हरारे में भारतीय उच्चायोग और नई दिल्ली में जिम्बाब्वे उच्चायोग ने इस निर्णय का समर्थन किया।

जिन प्रतिनिधियों ने अपना यात्रा कार्यक्रम रद्द कर दिया था या रद्द करने की प्रक्रिया में थे, उन्होंने अपने टिकट फिर से बुक कर लिए! यूरोप और अमेरिका के ५० देशों में हमारे आयोजकों ने राहत की सांस ली!

क्रमशः ….

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