एक नया आरम्भ | A New Beginning

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ऐसा लगता है कि हम इस दुनिया का एक भाग है, पर वास्तव में यह दुनिया हमारा भाग है। हम अपनी दुनिया को अपने मन में लेकर चलते हैं और हमारा मन तब तक शांत नहीं हो सकता जब तक हमारे आस-पास की दुनिया में अशांति है। जब जीवन की मध्यावस्था की परेशानियां समय से पूर्व किशोरावस्था में ही आरंभ हो जायें; समाज हिंसा और नशे की चपेट में आ जाये; मानवता केवल कल्पना मात्र में ही रह जाये; प्रसन्नता, प्रेम, दया केवल पुस्तकों और सिनेमा में ही देखने को मिलें; भ्रष्टाचार और अपराध को जीवन के अंग के रूप में स्वीकार कर लिया जाये; तब ये हमारे लिये संकेत हैं कि हमें समाज की चुनौतियों से लडने के लिये खड़े हो जाना चाहिये।

आज हम पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों का विनाशकारी पतन देख रहे हैं। अभी कुछ समय पहले कनेक्टिकट, यू.एस के प्राथमिक विद्यालय में एक लड़के ने छोटे बच्चों पर गोली चला दी। भारत में भी राजधानी दिल्ली में एक युवा लड़की, पुरुषों के समूह के घोर शोषण और आक्रमकता का शिकार बनी। इस घटना ने युवाओं को बड़ी संख्या में सड़कों पर प्रदर्शन करने व न्याय की मांग के लिये खड़ा कर दिया।

पिछले कुछ वर्षों में हमने इस देश की मानसिकता में बदलाव लाने के लिये युवा वर्ग में अभूतपूर्व जागरुकता तथा इच्छा को देखा है, परंतु हमें इस आवेग को अराजकता व हिंसा के निम्न स्तर पर जाने से रोकना होगा । आवश्यकता है कि इस ऊर्जा को रचनात्मक मार्ग की ओर मोड़ा जाये । हमें ऐसा वातावरण बनाना है जहां दोष लगाने और कमियां निकालने की अपेक्षा सहायता और सहयोग को बढ़ावा दिया जाये।

जहाँ अधिकारी कानून और नियमों के पालन की रक्षा के लिये उत्तरदायी हैं, वहीं हमारा भी उत्तरदायित्व बनता है कि वातावरण से तनाव को दूर करने और समाज में मानवीय मूल्यों को बनाये रखने के लिये काम करें; अन्यथा जिन लोगों तक यह संदेश नहीं पहुंचा है, वो आक्रोशवश हमें और हमारे प्रिय जनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हम सब लोगों को बेहतर भारत के निर्माण के लिये कार्य करने के लिये थोड़ा समय अवश्य निकालना चाहिये – कम से कम सप्ताह में कुछ घंटे। यदि कुछ ही लोग इस विशाल व उदार दृष्टिकोण वाले हो जायें, जो दूसरों के भावनात्मक हित का उत्तरदायित्व ले सकें, तो समाज के शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण होने की बड़ी सम्भावना है।

हम सब अपने वातावरण को तनावमुक्त रखने के लिये छोटे-छोटे प्रयास तो कर ही सकते हैं । हमें अपनी खुशियां दूसरों के साथ बांटना सीखना होगा। यदि आप प्रसन्न हैं तो अपनी प्रसन्नता दूसरों के साथ बांटिये; इसे केवल अपने तक सीमित मत रखिये। इस भावना के साथ किया गया कोई भी कार्य सेवा है और दूसरों की मानसिक स्थिति को ऊपर उठाना सबसे बड़ी सेवा है। लेकिन हां, हमें इस बात के लिये सजग और संवेदनशील रहना होगा कि अधिक उत्साह में हम दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचायें। जो कुछ भी हम को प्राप्त है, जब हम उसे दूसरों के साथ बांटते हैं, तो ईश्वर और अधिक प्रचुरता से वह आनंद हमारे ऊपर बरसाता है।

आध्यात्मिक होने का यह अर्थ नहीं है कि दुनिया की ओर से आंखें फेर ली जायें। इसके विपरीत, जितना अधिक आप स्वयं के बारे में जानते जाते हैं, उतना अधिक ही आप दूसरों के विषय में जानने लगते हैं और उन चीज़ों को भी जानने लगते हैं, जो सामने नहीं होती। कहीं ना कहीं अंदर से हम सब यह जानना चाहते हैं कि हम कौन हैं, हम यहां क्यों है और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? अधिकांश लोग इन प्रश्नों को समय की बर्बादी समझ कर दूर रखते हैं। आध्यात्मिकता का अर्थ है आत्म-ज्ञान की इस जिज्ञासा को जीवंत रखना और इस लक्ष्य को कभी न छोड़ना। ये प्रश्न एक दिशा सूचक यंत्र की तरह हैं, जो कि आपके जीवन को दिशा प्रदान करते हैं।

प्रत्येक अंत राहत और पूर्णता का भाव लाता है और किसी भी कार्य का आरम्भ अपने साथ नई आशा व उत्साह लाता है। इसीलिये दोनों के ही साथ उत्सव मनाना जुड़ा है। भूतकाल ने आपको समझदार बनाया है, भविष्य आपको कार्य करने के लिये प्रेरित कर रहा है और वर्तमान ही है, जिसमें आप कार्य करने की योजना बना सकते हैं और उसे आरंभ कर सकते हैं। जहां भूतकाल में हुये कड़वे अनुभवों से आप को आगे चुनौतियां स्वीकार करने और जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिये, वहीं उन्हीं गलतियों को दोहराने की मूर्खता भी नहीं करनी चहिये। नवीन प्रेरणा, नवीन मार्ग व अंतर्ज्ञान के लिये प्रतिदिन कुछ क्षणों का चिंतन अवश्य करना चाहिये; क्योंकि ये सब योजना बनाने तथा उस को क्रियान्वित करने के लिये आवश्यक हैं।

जब आप एक के बाद एक घटना से गुजरते हैं, तो इस बात के प्रति सजग हो जायें कि जीवन एक नदी के समान है। रास्ते में कितने भी पत्थर हों, नदी उन पत्थरों के ऊपर से या उनके आसपास से बहती रहती है । कोई भी वर्ष बिना प्रसन्नता के या बिना चुनौतियों के नहीं बीतता। आपको प्रसन्नता के प्रत्येक क्षण को सेवा के लिये और प्रत्येक चुनौती को विकास के अवसर के रूप में प्रयोग करना चाहिये। वर्ष २०१२ दुनिया का अंत तो नहीं लाया, परन्तु नव वर्ष २०१३ एक नवीन आरम्भ अवश्य ला रहा है।

[यह लेख स्पीकिंग ट्री में २९ दिसंबर, २०१२ को छपा था]

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