राजधानी दिल्ली से सबक | A Capital Lesson

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दिल्ली विधानसभा चुनावों ने दिखा दिया कि लोकतंत्र में जनता को मामूली नहीं समझना चाहिए । अप्रत्याशित मतदान तथा लगभग सर्वसम्मत परिणाम आने से राजनीति में एक नया बदलाव आ गया ।

आप (AAP) ने पिछले साल की असफलता का बोझ उतारकर तथा मतदाताओं से संपर्क स्थापित करके प्रशंसनीय कार्य किया है। दूसरी तरफ भाजपा (BJP) अपनी पुरानी जीतों के सिलसिले से आत्म संतुष्ट हो गई थी और उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी; जबकि कांग्रेस की हार ने एक बार फिर साफ कर दिया कि वह अपनी ही दुनिया में रह रही है। अपनी पिछली हारों से कांग्रेस कोई सबक नहीं सीखना चाहती।

पिछले साल के राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में अच्छी सफलता अर्जित करने के बाद यह परिणाम भाजपा के लिए पहला झटका था; जो कि उन्हें ठीक उनकी नाक के नीचे मिला जिससे वह चारों खाने चित हो गए। एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में लगातार कांग्रेस की हार ने बीजेपी को बिना किसी चुनौती के तेजी से आगे बढ़ने में सहायता की। आप की इस शानदार जीत ने दिखा दिया कि बीजेपी से टक्कर लेने वाली दूसरी पार्टी भी है, इससे भाजपा धरातल पर आ गई। लोग ऐसा नेता चाहते थे जो कि उनकी भाषा में उनसे दिल की बात करें, केवल बड़े-बड़े शब्द और दिखावा ही लोगों को नहीं जीत सकता। किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार अपकर्ष की पहली निशानी है। अपने शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल ने इसी तथ्य की पुष्टि की। बीजेपी के वरिष्ठ नेता समझदार हैं यह सीखने के लिए कि उन्होंने क्या ठीक करा और कहाँ गलती की।

लोगों का विश्वास जीतना कठिन है और खोना आसान। आप ने अपनी गलतियों से सीख ली और कमियों को ईमानदारी से दूर करने का प्रयास किया। किसी भी तरह की नाटकीय कार्यवाही से वह लोगों का विश्वास खोना नहीं चाहती थी। अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए, आप को बहुत से विभागों और एजेंसियों को नाराज करने की अपेक्षा उनसे सहयोग स्थापित करना पड़ा, मैं उनको उनके प्रयासों के लिए बधाई देता हूं।

इन चुनावो ने दिखाया कि भारत की विविधता उसका राजनैतिक सुरक्षा कवच है। देश के हर क्षेत्र की अलग अलग बारीकियाँ है तथा कोई एक उपाय सब जगह कारगर नहीं है और यह अनिश्चितता ही राजनीतिक दलों को जागरुक रखती है।

बहुत सारे चुनावों में पूर्ण बहुमत का रुख स्वस्थ राजनीति की पहचान है। इसका अर्थ है कि आज के मतदाता अब अपने स्वार्थ पूर्ण छोटे-मोटे मसलों में फंसे नहीं है बल्कि असली मुद्दों पर सब की एक राय है। लोग अब केवल जाति धर्म के आधार पर वोट न कर के राष्ट्रीय मुद्दों के हित को देखते हुए मतदान करते हैं। वोट बैंक की घिनौनी राजनीति से हटकर लोग राष्ट्रीय मुद्दों के हित को देखते हुए तथा विकास और भ्रष्टाचार हटाने के प्रयासों के विषय में अधिक चर्चा कर रहे हैं।

आज के मतदाता अधिक समझदार व सजग हो गए हैं कि उनके नेता का आचरण कैसा है और वह लोगों की समस्याओं को समझने के लिए कितने प्रयत्नशील है। सोशल मीडिया की लोगों को जोड़ने व सामूहिक मन  बनाने में बहुत बड़ी भूमिका रही है , और जब यह सामूहिक मन  बोलता है तो हर कोई सुनता है। हमारे मतदाताओं में, खासतौर से युवाओं में, उच्च कोटि की जागरूकता दिखाई दी, जो कि लोकतंत्र के निर्माण में सहायक है। हमारा लोकतंत्र ऐसे जागरुक नागरिकों के निरीक्षण में सुरक्षित है।

कोई कह रहा था कि दिल्ली के चुनावो के इस परिणाम से सारे राजनीतिक दलों की इच्छा पूरी हो गई – बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत चाहती थी, आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत चाहती थी, और कांग्रेस भाजपा को सत्ता से दूर रखना चाहती थी। इसलिए किसी ने सच ही कहा है कि “सावधान रहें कि आप क्या चाहते हैं”।

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