श्री श्री ने नोबेल शांति केंद्र में क्लीन एयर गेम्स कॉन्फ्रेंस में मुख्य भाषण किया | Gurudev gives a keynote for Clean Air Games Conference at Nobel Peace Center
आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य | Published: | 1 min read
वैश्विक मानवतावादी एवम् आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर जी को एक अंतरराष्ट्रीय समारोह " ए क्लीन एयर गेम्स - ए यूनीक सेकंड डे " के अवसर पर मुख्य संबोधन देने के लिए आमंत्रित किया गया, जो पर्यावरण प्रभाव और खेलों में स्थायित्व को एक साथ लेकर आता है। इस समारोह का आयोजन नोबेल शांति केंद्र ,ओस्लो में विश्व पर्यावरण दिवस निकट आने के अवसर पर आयोजन किया गया।
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ओस्लो, नॉर्वे
4 जून 2019
वैश्विक मानवतावादी एवम् आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर जी को एक अंतरराष्ट्रीय समारोह ” ए क्लीन एयर गेम्स – ए यूनीक सेकंड डे ” के अवसर पर मुख्य संबोधन देने के लिए आमंत्रित किया गया, जो पर्यावरण प्रभाव और खेलों में स्थायित्व को एक साथ लेकर आता है। इस समारोह का आयोजन नोबेल शांति केंद्र ,ओस्लो में विश्व पर्यावरण दिवस निकट आने के अवसर पर आयोजन किया गया।
It was nice to share @ArtofLiving's approach to inculcating sustainability as a mindset at the Clean Air Games at the Nobel Peace Center in Oslo, Norway. With focused effort that mobilizes communities, creates awareness & shows clear impact, people's mindset can change. pic.twitter.com/Oy4fP0G72h
— Gurudev Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) June 4, 2019
गुरुदेव ने अपने संबोधन में कहा, “आगे बढ़ने के लिए मुख्य रूप से लोगों की मनोदशा में रूपांतरण लाना होगा। हमें एक – एक उपभोक्तावादी की मनोदशा में परिवर्तन लाना होगा,जो भविष्य की ओर भी देखता है।और मनोदशा को परिवर्तित करने के लिए ध्यान से सुनना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति तनावग्रस्त है, तो उसके लिए सुनना असम्भव है। बाहरी शांति केवल तभी आती है,जब हम भीतर से शांत होते हैं। एक व्यक्ति, जो तनावग्रस्त है, वह दूसरों की देखभाल या किसी अभियान में अपना योगदान नहीं कर सकता है,क्योंकि वह स्वयं ही बहुत थका हुआ है। एक शांत व्यक्ति ही पृथ्वी की देखभाल कर सकता है,क्योंकि वह पृथ्वी को अपना एक अंश मानता है। अधिक से अधिक लोगों को इसके प्रति शिक्षित करना होगा।”
कॉन्फ्रेंस में अन्य लोग भी उपस्थित थे,जिनमें नोबेल शांति केंद्र के सी ई ओ, लिव टोरेस एवम् अंतरराष्ट्रीय खेल समीक्षक, नट स्की डोल्बर्ग भी शामिल थे। खेल जगत की प्रख्यात हस्तियों, परिवर्तन लाने वाले, राजनेताओं, नीति निर्माताओं और हिस्सेदारी धारकों के समूह को संबोधित करते हुए ” मनोदशा में स्थायित्व : आर्ट ऑफ लिविंग का दृष्टिकोण ” यह विषय पर श्री श्री ने आर्ट ऑफ लिविंग के सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए अंदरूनी एवम् बाहरी दृष्टिकोण के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक रूप से भीतर से शांत एवम् समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध लोगों ने प्रेरित होकर महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने हेतु अपना योगदान दिया हैं।आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयं सेवक १५६ देशों में मौजूद हैं,जिन्होंने सफलतापूर्वक ८० लाख पेड़ लगाए हैं और पूरे भारत में ४१ नदियों के पुनरुद्धार का कार्य किया है (जो की सिर्फ कभी कागज पर मौजूद थी )। इससे लगभग ५० लाख लोग लाभान्वित हुए हैं।
गुरुदेव ने उदाहरण देकर यह बताया कि किस प्रकार से आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयं सेवकों ने २८०,००० से अधिक किसानों को खूंटी या चारा ना जलाने के लिए प्रेरित किया,जो दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता को खतरनाक स्तर तक खराब करने और विषैले प्रदूषणकारी तत्वों के वायु में जाने का मुख्य कारण है। किसानों को खूंटी को गीली घास पात से ढक देने और अपशिष्ट का पुनः प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया गया। इससे मिट्टी के लिए आवश्यक नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा भी बनी रहती है, जिससे किसान लाभान्वित होते हैं और वायु शुद्ध एवं श्वास लेने योग्य बनी रहती है।
उन्होंने लातूर की परिवर्तनकारी कहानी भी बताई। यह महाराष्ट्र का एक जिला है, जहां भयंकर सूखा पड़ा और यहां अन्य शहरों से पानी लाया गया। जब आर्ट ऑफ लिविंग ने सिविल सोसायटी के साथ मिलकर, नदियों के पुनरुद्धार अभियान का आरंभ किया, तो स्थिति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई। इस अभियान में सूखी नदियों और धाराओं का पुनरुद्धार, वर्षा के जल का भंडारण ,भूमिगत जल को फिर से लाने के लिए संरचनाओं के निर्माण और पानी के स्तर को बढ़ाने का कार्य किया गया।
गुरुदेव ने कहा,” पर्यावरण की भौगोलिक या राजनैतिक सीमाएं नहीं हैं। आप यह नहीं कह सकते हैं कि हमें केवल नॉर्वे में ही स्वच्छ वायु चाहिए। यदि कहीं और से अशुद्ध वायु आ रही है, तो हम उसे नहीं आने देंगे। हमारी एक ही पृथ्वी है और हमारा एक ही पर्यावरण है। इसकी देखभाल करने के लिए हमें विश्व भर में बहुत बड़े स्तर पर सजगता लानी होगी और इसके लिए आध्यामिक संसाधनों की आवश्यकता है।”
लोगों में पर्यावरण के प्रति सजगता एवम् लोगों की मनोदशा में परिवर्तन लाने के लिए, आध्यात्मिकता की आवश्यकता के अलावा, गुरुदेव ने व्यावहारिक ज्ञान के बारे में भी बताया ,जिससे धरती पर पड़ रहे पर्यावरण प्रदूषण के बोझ को कम किया जा सके। गुरुदेव ने विश्व भर में, नव वर्ष या अन्य अवसरों पर पटाखे चलाने का भी उल्लेख किया, जिसके कारण वायु में विषैले तत्व चले जाते हैं और वायु श्वास लेने योग्य नहीं रहती है। गुरुदेव ने यह सुझाव दिया कि विश्व के सभी समुदायों को पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए एक मध्यम मार्ग को अपनाना चाहिए,जिसमें इलेक्ट्रॉनिक या लेजर पटाखों का प्रयोग किया जाए।
उन्होंने मिथ्या कहानी फैलाने वाले लोगों को भी चुनौती दी, जो कहते हैं कि प्राकृतिक खेती में आर्थिक लाभ नहीं है और शीघ्रता से फसल उगाने के लिए रसायन एवम् जी एम् ओ बीज मिट्टी के लिए आवश्यक हैं। इसके बिना पूरी जनसंख्या भूखी मर जाएगी। “हमने यह सिद्ध किया है कि यह गलत है। यह एक समर्थक वर्ग है, जो गरीब लोगों से धन और शक्ति छीनने का प्रयास कर रहा है। इससे गरीब किसान अपने बीज बैंक नहीं बना पाते हैं। यह गरीब किसानों को अधिक पराधीन बना रहा है। हमने भारत में बार – बार यह प्रदर्शन किया है कि प्राकृतिक रूप से खेती करने में स्थायित्व है।”
लिव टोरेस के साथ स्थाई निवेश में साहसिक नेतृत्व की आवश्यकता पर विचार विमर्श करते समय , श्री श्री ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्र नाथ टैगोर की एक बात का उल्लेख किया,” जब आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तब आपको अनजान लोगों के विरोध का सामना करने के लिए, साहस की आवश्यकता होती है। टैगोर ने एक बहुत सुंदर नारा दिया ” एकला चलो रेे “। यदि आपके साथ कोई नहीं है, तो अकेले ही चलो। जब लोग यह देखते हैं कि जो आप कर रहे हैं, उसे करना बहुत आवश्यक है, तो वे भी आपके साथ हो जाएंगे।”
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