ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खुला पत्र | Open Letter to the All India Muslim Personal Law Board
नेतृत्व और नैतिकता | Published: | 1 min read
इस पत्र के माध्यम से मैं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे के बारे में हमारे देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना को सामने रखना चाहता हूं।
प्रिय अध्यक्ष एवं सभी सदस्यगण ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड,
आप सभी को मेरा नमस्कार
इस पत्र के माध्यम से मैं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे के बारे में हमारे देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना को सामने रखना चाहता हूं। जैसा कि हम सभी जानते हैं, यह मुद्दा हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एक पुराना और विवादास्पद मुद्दा रहा है। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है। आइए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संभावित परिणामों की जांच करें, जिसमें किसी एक के बदले दूसरे समुदाय के पक्ष में फैसला दिया गया हो।
पहली संभावना यह है कि पुरातत्व प्रमाणों जिनसे ज्ञात हुआ है कि वहाँ मस्जिद से बहुत पहले मंदिर था, के आधार पर अदालत यह घोषणा कर दे कि यह स्थान हिंदुओं को दिया जाता है। इस परिदृश्य में, मुसलमानों को हमारी कानून प्रणाली के बारे में गंभीर आशंका होगी और भारतीय न्यायपालिका में उनका विश्वास हिल सकता है। इसके कारण मुस्लिम युवा हिंसा का सहारा ले लें।
भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और समुदाय के अन्य नेताओं का यह कहना है कि वे इसे स्वीकार करेंगे, पर आने वाले समय में आपके समुदाय में सदियों तक यह भावना कायम रहेगी कि अदालत ने आप लोगों के साथ अन्याय किया है।
दूसरी संभावना यह है कि हिंदु मुकदमा हार जाएं और पूरी जमीन बाबरी मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय को उपहार स्वरूप प्रदान कर दिया जाए। इस स्थिति में हिंदू समुदाय में जबरदस्त असंतोष की भावना उत्पन्न होगी क्योंकि यह उनकी आस्था का मामला है और जिसके लिए वे 500 वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं। इससे पूरे देश में भारी सांप्रदायिक उथल-पुथल मच सकती है तथापि मुकदमा जीतने पर वे (मुसलमान) गाँवों से लेकर पूरे देश में करोड़ों हिंदुओं की सद्भावना तथा विश्वास को स्थायी रूप से खो देंगे।
तीसरी संभावना यह है कि अदालत इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखे जिसमें कहा गया है कि एक एकड़ में मस्जिद बना दी जाए तथा शेष 60 एकड़ जमीन मंदिर के निर्माण के लिए उपयोग की जाए, इस स्थिति में भारी सुरक्षा जोखिम को देखते हुए शांति बनाए रखने के लिए 50000 पुलिस कर्मियों की तैनाती की आवश्यकता होगी। यह समाधान भी मुस्लिम समुदाय के लिए फायदेमंद नहीं होगा। स्थानीय मुसलमानों के अनुसार उन्हें नमाज पढ़ने के लिए उसी मस्जिद में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वहाँ पहले से ही बाईस अन्य मस्जिदें मौजूद हैं तथा केवल पांच हजार लोग हैं जो उनका उपयोग करते हैं। यह पुन: विवाद का एक और बिंदु हो जाएगा और हम 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस की स्थिति को दोहराने का एक मौका देंगे जिसके कारण यह एक अनवरत संघर्ष का कारण बन जाएगा। इससे भी कोई समाधान निकलने वाला नहीं है।
चौथी संभावना यह है कि सरकार संसद में विधेयक लाकर मंदिर निर्माण का आदेश दे, इससे भी मुसलमान अपने आपको ठगा हुआ महसूस करेंगे।
अत: ये चारों संभावनाएं जिन्हें चाहे अदालत के आदेश से लागू किया जाए या सरकार के आदेश से, सभी का परिणाम पूरे देश के लिए और विशेषकर मुसलमान समुदाय के लिए विध्वंसात्मक ही होगा।
यदि मुस्लिम जीत जाते हैं तो वे हर गाँव-शहर में अपनी इस जीत का जश्न मनाएँगे और इससे केवल सांप्रदायिक तनाव और हिंसा फैलेगी। इसी प्रकार से यदि हिंदु जीतते हैं तो इससे मुसलमानों का आक्रोश बढ़ेगा तथा इसके कारण भी देश भर में दंगे भड़केंगे, जैसा कि हम पूर्व में देख चुके हैं।
दोनों ही समुदायों के वे लोग जो अदालत का आदेश मानने पर अड़े हुए हैं, वे मामले को हारने की स्थिति में धकेल रहे हैं।
मेरे हिसाब से इसका सबसे अच्छा समाधान यह है कि इस मामले को अदालत के बाहर सुलझाया जाए जिसमें मुस्लिम लोग आगे बढ़कर एक एकड़ जमीन हिंदुओं को उपहार के रूप में दे दें और उसके बदले हिंदु एक शानदार मस्जिद बनाने के लिए नजदीक की पाँच एकड़ जमीन मुसलमानों को दे दें। यह दोनों ही समुदाय के लोगों के लिए जीत की स्थिति होगी जिसमें मुसलमानों को न केवल देश भर के 100 करोड़ हिंदुओं का विश्वास जीतने का मौका मिलेगा बल्कि साथ ही सभी के लिए यह मुद्दा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। वहाँ एक पलकनामा पर यह उल्लेख किया जाएगा इस मंदिर का निर्माण हिंदु व मुसलमानों दोनों के सहयोग से किया गया है। इस प्रयास से यह मामला आने वाली पीढ़ियों तथा सदियों के लिए शांत हो जाएगा।
अदालत के अनुसार जाने से दोनों ही समुदायों का नुकसान होगा। इसलिए मैं फिर से दोहराता हूँ कि अदालत से बाहर समझौता करना दोनों ही समुदायों के लिए जीत की स्थिति रहेगी।
मैं दोनों ही धर्मो में आस्था रखने वाले लोगों से अनुरोध करता हूँ कि गंभीरता पूर्वक इस कार्य को करें नहीं तो हम अपने देश को एक गृह युद्ध की ओर धकेल देंगे। दुनियाँ पहले ही इन सब घटनाओं को बहुत बार देख चुकी है। अब हम इन सबसे अलग एक नई मिसाल कायम करें और पूरी दुनियाँ को दिखा दें कि हम अपनी आंतरिक समस्याओं को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा सकते हैं।
अब एक बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कुरान इस बात की इजाजत देता है कि मस्जिद को एक जगह से दूसरी जगह पर स्थानांतरित कर दिया जाए। इसका उत्तर है ‘हाँ’। मैंने व्यक्तिगत रूप से इस विषय पर सम्मानीय मौलाना सलमान नदवी तथा अन्य बहुत से मुस्लिम विद्वानों के विचार सुने हैं। वे इस जमीन को किसी सम्प्रदाय विशेष के हाथ में अथवा उन लोगों के हाथ में नहीं देंगे जिन्होंने बाबरी मस्जिद को ढहाया था बल्कि इसके विपरीत वे इसे भारत के लोगों को उपहार के रूप में प्रदान करेंगे। इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वे हार गए और वे समर्पण कर रहे हैं बल्कि इसके द्वारा वे अपने व्यापक दृष्टिकोण, परोपकार, उदारता और सद्भावना का परिचय देंगे।
मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी यही सुझाव दिया था कि इस मामले को अदालत के बाहर ही सुलझा लिया जाए। मैं इस आशा के साथ सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डरों) से इन विकल्पों पर विचार करने का अनुरोध करता हूँ कि वे छुद्र राजनीति और भावावेश से ऊपर देश को रखेंगे तथा दोनों ही समुदायों के बीच विश्वास, प्रेम तथा भाईचारा पनपने देंगे।
सादर
श्री श्री रवि शंकर