एनजीटी के पास आर्ट ऑफ लिविंग पर लगाए आरोपों का कोई पुख्ता तथ्य नहीं | No data to support allegations against The Art of Living at the NGT
नेतृत्व और नैतिकता | Published: | 1 min read
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट सिर्फ एक सेटेलाईट इमेज जो कि ५ सितम्बर २०१५ जब मानसून का मौसम रहता है, के आधार पर यह दिखाता है कि कार्यक्रम की जगह पानी के लिए थी। यह वास्तव में वास्तविक तथ्यों के साथ छेडछाड है।
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एनजीटी अपने क्षेत्राधिकार से आगे जा रही है | NGT committee exceeds jurisdiction
आर्ट ऑफ लिविंग के वकील श्री निखिल साखर दांडे ने एनजीटी के समक्ष निम्न तर्क प्रस्तुत किए –
प्रधान समिति द्वारा चयन पूर्वाग्रह
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट सिर्फ एक सेटेलाईट इमेज जो कि ५ सितम्बर २०१५ जब मानसून का मौसम रहता है, के आधार पर यह दिखाता है कि कार्यक्रम की जगह पानी के लिए थी। यह वास्तव में वास्तविक तथ्यों के साथ छेडछाड है। वर्ष २०१५ में बरसात के आंकडे बताते हैं कि सेटेलाईट इमेज में जो दिखाया गया है, पिछले १०० वर्षों में सर्वाधिक है और मानसून के समय का है। यह वास्तव में अप्रासंगिक है, भ्रम भर है। इससे जमीनी हकीकत को बगैर समझे चयन का पूर्वाग्रह कर प्रमुख समिति द्वारा दिखाया गया है।
संघनन के आरोप को साबित करने के लिए कोई तकनीकी डेटा नहीं
विशेषज्ञ समिति द्वारा दो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई क्रमशः २८ जुलाई और २८ नवम्बर को। इसमें लिखा गया है कि कैसे आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा जमीन को दबाया। लेकिन वकील द्वारा जवाब दिया गया कि इसके लिए कोई तकनीकी रिपोर्ट नहीं है, न ही कोई तकनीकी आंकडे हैं जो इस बात को साबित कर सकें कि जमीन दबाने का कार्य वास्तव में हुआ है।
विशेषज्ञ समिति द्वारा लिखा गया है कि कुल १७० हेक्टेअर जमीन का उपयोग हुआ है जबकि आर्ट ऑफ लिविंग ने तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया है कि कार्यक्रम के लिए केवल २५ हेक्टेअर जमीन का उपयोग किया गया। यहाॅं तक कि याचिका कर्ता ने स्वयं अपने आवेदन में २५ हेक्टेअर जमीन का उपयोग होना बताया है।
एनजीटी अधिनियम के विपरीत क्षेत्राधिकार की अधिकता
विशेषज्ञ समिति यह लिखती है कि कार्यक्रम के पूर्व स्थल की स्थिति नहीं पता होने से उसके बहाली के लिए कोई सिफारिश नहीं देती है लेकिन स्थल की पुर्नस्थापना के लिए आदर्श सिफरिश जरूर देती है। ट्रिब्यूनल के आदेश के बिना इसे एकतरफा समिति ने अपनी तरफ से दिया है, जो कि एनजीटी के सेक्शन १५ के अनुसार उसके क्षेत्राधिकार के बाहर की बात है। यह दिखाता है कि समिति ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया और संपूर्ण रिपोर्ट की गरिमा को खराब किया।
यमुना मामले में २०१५ के निर्णय का उल्लंघन नहीं
अंत में आर्ट ऑफ लिविंग के वकील ने यह निवेदन किया कि मनोज मिश्र द्वारा दायर यमुना मामले में २०१५ के फैसले के उल्लंघन के खिलाफ आरोपों को समझाया गया और न्यायाधिकरण को बताया कि फैसले का कोई उल्लंघन नहीं है। जब एक बार सारी अनुमतियाॅं ले ली गई तो फसलें के उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता है और किसी भी मामले में निर्णय साइट पर फाउंडेशन द्वारा किए गए गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करता है।
काउंसिल ने दोहराया कि आर्ट ऑफ लिविंग के खिलाफ उनके किसी भी आरोप का समर्थन करने के लिए, ठीक सोच विचार नहीं किया गया, अधिकार क्षेत्र की अधिकता और कोई परीक्षण या तकनीकी डेटा भी नहीं है।
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