यदि यमुना इतनी संवेदनशील नदी थी तो अधिकारियों ने WCF के लिए अनुमति क्यों दी? | Why did the authorities give permission for WCF if Yamuna was so fragile?

नेतृत्व और नैतिकता | Published: | 1 min read


यदि यमुना इतनी संवेदनशील नदी थी तो अधिकारियों ने WCF के लिए अनुमति क्यों दी? | Why did the authorities give permission for WCF if Yamuna was so fragile?  

सभी ईमानदार पर्यावरणविदों को मामले का अध्ययन करने और सच्चाई का खुलासा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

यह पृष्ठ इन भाषाओं में उपलब्ध है: English

सभी ईमानदार पर्यावरणविदों को मामले का अध्ययन करने और सच्चाई का खुलासा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

एनजीटी कानून का पालन करने वाले संगठन, आर्ट ऑफ लिविंग को प्राकृतिक न्याय देने में देरी करने और अपनी समिति के माध्‍यम से मीडिया में बदनाम करने के कारण लगे दाग से अपने आप को कभी उबार नहीं पाएगी।

आर्ट ऑफ़ लिविंग ने NGT सहित सभी आवश्यक अनुमति प्राप्त कर ली थी। आयोजन से पूर्व 2 महीने तक हमारा आवेदन एनजीटी के समक्ष लंबित था। वे चाहते तो आरंभ में ही कार्यक्रम को रोक सकते थे। यह प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों की अवहेलना करता है कि एक तरफ तो आप अनुमति देते हैं और दूसरी तरफ किसी भी नियम का उल्लंघन न करने के लिए जुर्माना भी लगाते हैं! यह हरे सिग्नल पर किसी का “चालान” काटने जैसा है!

यदि जुर्माना लगाना ही है तो अनुमति देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों और स्वयं NGT पर लगाया जाना चाहिए। यदि यमुना इतनी उपजाऊ, दुर्बल और पवित्र थी, तो उन्हें विश्व सांस्कृतिक महोत्सव को आरंभ में ही रोक देना चाहिए था।

साधुवाद (वाहवाही) और प्रशंसा के योग्य किसी ऐतिहासिक कार्यक्रम को एक अपराध के रूप में दर्शाया गया है! संसार भर के 1.8 बिलियन लोगों द्वारा देखे गए, परिसर में असंख्‍य लोगों की उपस्थिति दर्ज कराने वाले और बिना किसी नींव के 7 एकड़ के फ्लोटिंग मंच (जो अपने आप में एक चमत्कार है!) वाले एक कार्यक्रम ने न तो हवा, न जल और न ही भूमि को प्रदूषित किया। संसार भर में सांस्कृतिक कार्यक्रम नदी के तट पर ही आयोजित किए जाते हैं।

हमारी पूरी मंशा नदी को बचाने के लिए जागरूकता लाने की थी। आर्ट ऑफ़ लिविंग वह संस्‍था है जिसने 27 नदियों को पुनर्जिवित किया है, 71 मिलियन पेड़ लगाए हैं, अनेक तालाबों को पुनर्जीवित किया है, और उसी पर एक मृत नदी को नष्ट करने का आरोप लगाया जा रहा है। क्या मजाक है!

वहां डंप किए जा रहे मलबों और आसपास आने वाली स्थायी संरचनाओं पर तथाकथित विशेषज्ञों की चुप्पी उनकी दुर्भावना को उजागर करती है।

इन सब से बढ़ कर याचिकाकर्ता की समिति के साथ निकटता गंभीर प्रश्न उठाती है जिसके लिए आर्ट ऑफ लिविंग ने एक पूर्वाग्रह आवेदन दायर किया है, जो लंबित है।

उद्धारक को विनाशक कहा जा रहा है और न्यायकर्ता ईमानदार को दंडित कर रहा है! प्रौद्योगिकी को धन्यवाद, कि पिछले 10 वर्षों से गूगल अर्थ पर उपलब्ध आंकड़ों से आर्ट ऑफ़ लिविंग पर लगे सभी आरोप खारिज हो गए हैं।

मैं सभी ईमानदार पर्यावरणविदों को मामले का अध्ययन करने और सच्चाई का खुलासा करने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

“मुझे भारतीय न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि हमारी अदालतें सच्चाई को बरकरार रखेंगी और आर्ट ऑफ़ लिविंग को मिले अति निंदा और संताप के लिए सभी जिम्मेदार को दंडित करेंगी।”

~ श्री श्री रवि शंकर

आर्ट ऑफ लिविंग की लीगल (कानून) टीम इसके आगे कहती है:

आर्ट ऑफ लिविंग एनजीटी द्वारा गठित विशेषज्ञों की तथाकथित समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों से बेहद आहत और दुखी है, विशेष रूप से पूरी तरह से निराधार उस आरोप से कि WCF से यमुना नदी/ नदी के तट पर पर्यावरणीय क्षति हुई है।

विशेषज्ञों की समिति ने बेहद गैर-जिम्मेदार एवं जानबूझ कर पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्रवाई की है।
सबसे पहले उन्‍होंने तथाकथित क्षति को सुधारने के लिए 120 करोड़ रुपए जैसी बड़ी राशि का दंड क्रूरता से हमारे ऊपर लगाया। ईमानदार या जिम्मेदार विशेषज्ञों का कोई भी निकाय इस प्रकार का बयान नहीं देता है परंतु बाद में यह स्‍वीकार किया गया कि ये केवल “दृश्य आकलन” के आधार पर किया गया था।

इसके बाद समिति ने अपने पक्षपातपूर्ण आचरण को तब और संयोजित कर दिया जब श्री सी. आर. बाबू ने मीडिया को एक साक्षात्कार दिया (और वह भी कोई वैज्ञानिक आकलन करने से पूर्व) जिसमें उन्‍होंने याचिकाकर्ता के पक्ष को जानबूझकर समर्थन किया था।

क्या ट्रिब्यूनल द्वारा गठित कोई निष्पक्ष स्वतंत्र समिति इस तरह का मीडिया साक्षात्कार देती? समिति के स्पष्ट पूर्वाग्रह को दिखाने के लिए हमें और क्या करने की आवश्यकता है?

कार्यक्रम के पश्‍चात इसी निकाय को एक और रिपोर्ट प्रस्‍तुत करने के लिए कहा गया था, और चूंकि पूर्व में किए गए इनके प्रेरित दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था, इसलिए इनके पूर्व के बयानों (जिसमें उनके द्वारा मीडिया को दिया गया बयान भी शामिल है) को किसी तरह समर्थन करते हुए तथ्‍य तैयार किए गए। उन्‍होंने इसे ये कहते हुए तैयार किया कि इससे पर्यावरण को नुकसान हुआ है। तथापि इनके पूर्व के रु.120 करोड़ के दावे को खींच-तान कर भी किसी तरह समर्थन नहीं किया जा सकता था इसलिए समिति ने जानबूझकर तथ्‍यों को अस्‍पष्‍ट छोड़ते हुए नुकसान का आकलन नहीं किया। व्‍यक्ति केवल एक अनुमान ही लगा सकता है कि कैसे एक समिति, जो कार्यक्रम से पूर्व केवल दृश्‍य मूल्‍यांकन के आधार पर 120 करोड़ रुपए कह सकती है, वह परीक्षण के पश्‍चात कोई आंकड़ा देने में इतना क्‍यों कतरा रही है। स्पष्ट है कि जमीनी हकीकत किसी पर्यावरणीय ह्रास के आरोप का समर्थन नहीं कर रहे हैं और इसीलिए समिति कुछ कहने में असमर्थ है।

एनजीटी को पुन: जा कर तथाकथित नुकसान की मात्रा का आकलन करने और एक उचित मूल्यांकन देने के लिए कहा गया, तो अब जा कर एक नवीनतम रिपोर्ट आई है, जिसमें उन्‍होंने कहा है कि इससे लगभग 13 करोड़ रु. का नुकसान हुआ है। वे यह भी कहते हैं कि पूरे क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए लगभग 42 करोड़ रु. खर्च किए जाने की आवश्‍यकता है। इस रिपोर्ट में फिर से, वे कहते हैं कि ये संख्या सही नहीं हैं और आगे के अध्ययन की आवश्यकता है। वास्तुत: मूल्यांकन के दौरान, कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं किया गया है। बिना किसी परीक्षण के मामले का मूल्‍यांकन समझौते की तरह किया गया है। कोई भी ईमानदार विशेषज्ञ ऐसे आधारहीन निष्कर्षों को सही नहीं ठहरा सकता है।

क्या विशेषज्ञों का कोई निकाय अपने ही निष्कर्षों के विषय में इतना अनिश्चित और अस्पष्ट हो सकता है? यहां स्पष्ट रूप से एक समिति अपने पूर्व के दावों का समर्थन करने की कोशिश कर रही है, जिसे उसने बड़े ही गैर-जिम्मेदाराना तरीके से किया था और ज़मीन पर बिना किसी अध्‍ययन या परीक्षण किए स्‍वीकार किया था। चूंकि वैज्ञानिक आंकड़े किसी भी प्रकार की कोई पर्यावरणीय क्षति का समर्थन नहीं करते हैं (120 करोड़ रुपए को छोड़ दे तब भी), समिति केवल अपना बचाव करने के लिए ही अपनी रिपोर्ट लिख रही है।

समिति के पक्षपातपूर्ण और गैरजिम्मेदाराना रवैये के कारण ही आर्ट ऑफ़ लिविंग ने साइट पर विजिट करने से पूर्व एनजीटी में निष्पक्ष स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति का पुनर्गठन करने का आवेदन दिया था। इस आवेदन पर अभी तक सुनवाई नहीं हुई है। आर्ट ऑफ़ लिविंग ने विशेषज्ञ समिति से प्रतिपरीक्षण /जिरह करने की अनुमति के लिए भी एक आवेदन दिया है। भूमि कानून कहता है कि विशेषज्ञ की रिपोर्ट को तब तक साबित नहीं माना जा सकता जब तक कि विशेषज्ञ खुद को प्रतिपरीक्षण/जिरह के लिए प्रस्‍तुत न कर दे। इस आवेदन पर भी अब तक सुनवाई नहीं हुई है। वास्तुत: एनजीटी में मामले के गुण-दोष पर सुनवाई होना अभी बाकी है तथापि बिना गुण-दोष पर सुनवाई के उसे आर्ट ऑफ़ लिविंग को मीडिया में बदनाम करने की अनुमति है। ये ऐसा ही जैसे कि आर्ट ऑफ लिविंग को सुने जाने का अवसर दिए बिना ही उसे दंडित कर दिया गया हो।

उपग्रह के चित्र स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि यमुना या इसके बाढ़ के मैदानों को WCF के कारण कोई नुकसान नहीं पहुँचा है।

भाषांतरित ट्वीट


@ श्रीश्री – सत्य हमेशा विजय प्राप्त करेगा; हालांकि उससे पहले झूठ का बोलबाला होगा। बस इंतज़ार करो और देखो!


भाषांतरित ट्वीट


@ श्रीश्री – एनजीटी समिति की अनियतता और झूठ के बारे में आर्ट ऑफ़ लिविंग का आधिकारिक
बयान!


संबंधित आलेख:

एनजीटी के बारे में तथ्य: The NGT committee is biased and unscientific, lacks credibility

ब्लॉग पोस्ट: Strange Are the Ways of Karma

ब्लॉग पोस्ट: Yamuna and the World Culture Festival

Testimonies of World Leaders: The World Culture Festival 2016

यह पृष्ठ इन भाषाओं में उपलब्ध है: English